शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
शूल चुभा सुरभित गुलाब का फूल
कली-मन म्लान कर रहा
जंगल काट, पहाड़ खोदकर
ताल पाटता महल न जाने
भू करवट बदले तो पल में
मिट जाएँगे सब अफसाने
सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने
कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का गान कर रहा
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....
पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता
उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का भान कर रहा
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें
मन मिल जाए ब्याह रचाएँ
एक गोत्र का खेद न जानें
दलदल में पल दल न बनाते
ना पंचायत, ना चुनाव ही
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें
अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
--
संजीव वर्मा "सलिल"
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
शूल चुभा सुरभित गुलाब का फूल
कली-मन म्लान कर रहा
जंगल काट, पहाड़ खोदकर
ताल पाटता महल न जाने
भू करवट बदले तो पल में
मिट जाएँगे सब अफसाने
सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने
कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का गान कर रहा
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....
पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता
उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का भान कर रहा
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें
मन मिल जाए ब्याह रचाएँ
एक गोत्र का खेद न जानें
दलदल में पल दल न बनाते
ना पंचायत, ना चुनाव ही
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें
अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
--
संजीव वर्मा "सलिल"
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकमल के दुर्लभ पर्यायवाची अमूल्य मोतियों की माला से नवगीत को सुसज्जित करने के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसलिल जी, आप ने गीत में कमल परिवार का सम्पूर्ण परिचय ही करा दिया. आप की आप्त भाषा वैदिक काल की याद करा देने वाली है, आप के अतिशय गहन अध्ययन का संकेत देती है. भारतीयता का नैसर्गिक आनन्द यहां पर मिलता है. गीत तो आप के हाथ में खेलता है.
जवाब देंहटाएंसलिल जी ने कमाल ही कर दिया।कमल के इतने नाम तो छोटे मोटे शब्दकोष में भी नहीं मिलते।
जवाब देंहटाएंकुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का गान कर रहा
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....
पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता
सलिल जी को कमल के निम्न लिखित पर्यावाची नाम देने के लिए धन्यवाद:
जवाब देंहटाएंअब्ज,अलिप्रिय,अर्विन्दिनी,अलोही,अम्बुज,अम्भज, अमिताम्बुज,अहशिमुख,इन्दीवर,उत्पल,उदधिज,कमल,कुंद,कुमुद, कुमुदिनी,कमलिनी,कैरव,कोकनद,जलज,जलज,जलरुह, तोयज,नलिन, नीरज,पंकज,पुंग,पद्म,पुह्कर,पुष्कर, पुन्नाग,पुंडरिक, मुकुंद,राजीव,रविमुख,वारिज,शतदल,सरोज, सरसिज,,सिन्धुज, सूर्यमुख,क्षीरज,
कुछ नाम मेरी तरफ से :
सलिलज,मृणालिनी,नलिनी,अरविन्द.
धन्यवाद
सलिल जी को एक अच्छे नवगीत के लिए बधाई! आप का हर नवगीत हमें बहुत कुछ सिखाता है,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंभ्रमर हैं पाठक,
जवाब देंहटाएंकमल हैं गीति रचना.
नहीं है संभव
सुरभि से तनिक बचना.
'सलिल' लहरें
किलोलित हो बह रही हैं.
नव सृजन की ऋचाएँ
कुछ कह रही हैं.
आपका आभार शत-शत
जो सराहा.
नेह का नाता हमेशा
ही निबाहा.
पुण्डरीक सिंधुज वारिज
जवाब देंहटाएंतोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता
उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का भान कर रहा
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
बहुत ही सुन्दर रचना सलिल जी को बहुत बहुत बधाई,
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
अप्रचलित “ाब्दों के बावजूद उनका बारीक व कलात्मक गंुफन किस प्रकार उन्हेें गेय और हृदयंगम बना देता है इसकी बेजोर मिसाल है यह नवगीत और यह कारीगरी तो आप जैसा कोई “ाब्द षिल्पी और अनुभतियों का बाजीगर ही कर सकता है आचार्यजी। अनंत बधाई अपने गीतो के बहाने हमारे “ाब्द भंडार को बढ़ाने के लिए।
जवाब देंहटाएंकमल के अप्रचलित पर्यायवाची नाम-भंडार के इस बहुत सुंदर गीत ने हमारे शब्द भंडार में वृद्धि की है.
जवाब देंहटाएंआचार्य सलिल जी को धन्यवाद.
नवगीत में कारीगरी तो होती है पर सादगी की होती है। सलिल जी के गीत में सहजता कहीं नहीं झलक रही है केवल केशव बनने की कोशिश है। पर्यायवाची शब्दों का बहुत अच्छा प्रयोग किया है परन्तु प्रत्येक पर्यायवाची अपनी अलग पहचान भी रखता है वह कहीं नहीं दिख रहा है। नवगीत के नए पाठक हो सकता है ऐसी ही माथापच्ची को नवगीत न समझ बैठें ये खतरा भी उभर कर आ रहा है।
जवाब देंहटाएंकेशव का एक छन्द है पंचवटी के सौन्द्रय पर-
सब जात फटी दुख की दुपटी कपटी न रहे जहँ एक घटी
निघटी रुचि मीचु घटी हु घटी जग जीव जतीन की छूटी तटी
अघ ओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान गटी
चहुँ ओरन नाचत मुक्त नटी गुण धूर जटी वन पंचवटी ।
इसमें मथापच्ची तो है पर कविता कहीं नहीं है..........
नवगीत में भी मथापच्ची से बचना बहुत जरूरी है।
-राजेन्द्र गौतम नवनीत
नवगीत में कारीगरी तो होती है पर सादगी की होती है। सलिल जी के गीत में सहजता कहीं नहीं झलक रही है केवल केशव बनने की कोशिश है। पर्यायवाची शब्दों का बहुत अच्छा प्रयोग किया है परन्तु प्रत्येक पर्यायवाची अपनी अलग पहचान भी रखता है वह कहीं नहीं दिख रहा है। नवगीत के नए पाठक हो सकता है ऐसी ही माथापच्ची को नवगीत न समझ बैठें ये खतरा भी उभर कर आ रहा है।
जवाब देंहटाएंकेशव का एक छन्द है पंचवटी के सौन्द्रय पर-
सब जात फटी दुख की दुपटी कपटी न रहे जहँ एक घटी
निघटी रुचि मीचु घटी हु घटी जग जीव जतीन की छूटी तटी
अघ ओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान गटी
चहुँ ओरन नाचत मुक्त नटी गुण धूर जटी वन पंचवटी ।
इसमें मथापच्ची तो है पर कविता कहीं नहीं है..........
नवगीत में भी मथापच्ची से बचना बहुत जरूरी है।
-राजेन्द्र गौतम नवनीत
सलिलजी
जवाब देंहटाएंक्लिष्ट, भ्रामक किंतु नवगीत है। कवि का सरल मन सहज नहीं उतार पायेगा गले। उर्दू के शब्द 'गुलाब', 'महल', 'अफ़साने' और 'सफे़द' शब्द का प्रयोग थोड़ा खला। हिंदी शब्द रूपायित हो सकते थे। मेघ बजे-मेघ गर्जन कहीं नहीं सुनाई देता।
'आकुल'