उड़ गया मधुपान कर
कोई मधुप
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
सुर्ख चेहरे हो गए
जलकुंभियों के
कान में कहकर गया
कुछ बात कोई
डाकियों के का़फिले
फिर चल पड़े हैं
गंध-भीनी चिट्ठियाँ
लेकर परों में
गाँव के रिश्ते
सरोवर से जुड़े हैं
लग गई फिर पहुँचने
पुरइन घरों में
हो गया ऐसा असर
फिर जादुई है
कुछ दिनों से
सो न पाई रात कोई
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
बढ़ गई चिन्ता
सरोवर में बढ़ा जल
गात पुरइन ने बढ़ाया
जल सतह तक
घट गया जल
पर न घट सकता कमल-कद
अन्त तक जूझा हवा से
फिर फतह तक
है हमारे संस्कारों का पुरोधा
या सुरभि के सिन्धु का
नवजात कोई
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
--
रचनाकार ने नाम नहीं लिखा
कोई मधुप
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
सुर्ख चेहरे हो गए
जलकुंभियों के
कान में कहकर गया
कुछ बात कोई
डाकियों के का़फिले
फिर चल पड़े हैं
गंध-भीनी चिट्ठियाँ
लेकर परों में
गाँव के रिश्ते
सरोवर से जुड़े हैं
लग गई फिर पहुँचने
पुरइन घरों में
हो गया ऐसा असर
फिर जादुई है
कुछ दिनों से
सो न पाई रात कोई
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
बढ़ गई चिन्ता
सरोवर में बढ़ा जल
गात पुरइन ने बढ़ाया
जल सतह तक
घट गया जल
पर न घट सकता कमल-कद
अन्त तक जूझा हवा से
फिर फतह तक
है हमारे संस्कारों का पुरोधा
या सुरभि के सिन्धु का
नवजात कोई
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
--
रचनाकार ने नाम नहीं लिखा
सारगर्भित रचना बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंजिसने भी यह नवगीत लिखा है वह कोई सिद्धहस्त नवगीतकार होना चाहिए। जिसने इतना सुन्दर नवगीत लिखा है वह अपना नाम भी बता जाए तो मजा आ जाए।
जवाब देंहटाएंकिसी ने सच ही कहा है " नाम में क्या धरा है? यहाँ अनाम रचनाकार की रचना ने पाठशाला का नाम सार्थक कर दिया है। सही मायने में नवगीत के इस रचनाकार का नाम तो जानना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंडाकियों के का़फिले
फिर चल पड़े हैं
गंध-भीनी चिट्ठियाँ
लेकर परों में
गाँव के रिश्ते
सरोवर से जुड़े हैं
लग गई फिर पहुँचने
पुरइन घरों में
हो गया ऐसा असर
फिर जादुई है
कुछ दिनों से
सो न पाई रात कोई
और पहरों काँपता-सा
रह
बहुत ही सुन्दर, नवगीत ने मन में एक चित्र उकेर दिया बधाई !
जवाब देंहटाएंआप के लिए न नाम के मायने
पर हम आप के नाम के दीवाने .
अपने नाम को हमारे लिए सामने लायें .धन्यवाद.
मधुर और मोहक गीत... नव अभिव्यंजना... साधुवाद.
जवाब देंहटाएंउड़ गया मधुपान कर
जवाब देंहटाएंकोई मधुप
और पहरों काँपता-सा
रह गया जलजात कोई
सुर्ख चेहरे हो गए
जलकुंभियों के
कान में कहकर गया
कुछ बात कोई
एक अच्छे नवगीत के लिये रचनाकार को बहुत बहुत बधाई,
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
सिद्धहस्त नवगीतकार का नवगीत
जवाब देंहटाएंअनाम होकर भी लोग कभी कभी इतने नाम कमा लेते हैं कि नाम के सारे आयाम बौने पड़ जाते हैं । बेषक उन्होंने अपना नाम नहीं भेजा पर उनके गान में उनका नाम साफ साफ झलकता है । इसमें “ाब्दों की बुनाई के साथ भावों की लुनाई भी देखते ही बनती है। एक साथ इतनी सारी विषेशताओं से लबरेज इस नवगीत के अनाम रचनाकार को हम सलाम करते हैं।
जवाब देंहटाएंआज जाने क्यों इतने दिनों में यहाँ आई, ये कविता पढ़ी, अब और कुछ नहीं पढ़ सकूंगी!
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति जैसे बात करती हो ...
ये अत्यंत सुखद कि लिखने वाले को नहीं जानते हम ... फ़िर ये कविता हमसब की अपनी हो गई...
मिथिला में बचपन का एक खेल है ..."अटकन-बटकन.." उसी में ये पंक्तियाँ हैं ... "पुरइन के पत्ता हीले-डोले... कमलक फूल दोनों अलगल जाय! " सो उन बाल-भावों से ले के जलकुम्भियों के सुर्ख़ चेहरे, और पहरों कांपता सा...., कपोतों / मेघदूतों की उड़ानें, कमल का जूझना ...
सब कुछ अति सुन्दर.
बस एक पंक्ति ऎसी लगी जिसे शायद बदलाना चाहूँ : "फ़िर फतह कर" ... इसमें कुछ है जो कविता में रम नहीं रहा. खाली उर्दू की बात नहीं क्योंकि सुर्ख़ तो बहुत सुन्दर लग रहा है ऊपर की पंक्तियों में.
आभार आपका !
सादर शार्दुला
इस नवगीत के रचनाकार हैं : जगदीश व्योम!
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