16 नवंबर 2010

१५. महका आँचल

मेहंदी-सुर्खी
काजल लिखना
महका-महका
आँचल लिखना!

धूप-धूप
रिश्तों के
जंगल
ख़त्म नहीं
होते हैं
मरुथल
जलते मन पर
बादल लिखना!

इंतज़ार के
बिखरे
काँटे
काँटे नहीं
कटे
सन्नाटे

वंशी लिखना
मादल लिखना!
--
डॉ. हरीश निगम

5 टिप्‍पणियां:

  1. जलते मन पर बादल लिखना। ख़ूबसुरत पंक्तियां बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. धूप-धूप
    रिश्तों के
    जंगल
    ख़त्म नहीं
    होते हैं
    मरुथल
    जलते मन पर
    बादल लिखना!

    सुंदर भावाव्यक्ति अच्छी लगी

    जवाब देंहटाएं
  3. धूप-धूप
    रिश्तों के
    जंगल
    ख़त्म नहीं
    होते हैं
    मरुथल
    जलते मन पर
    बादल लिखना
    sunder likha hai
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।