डॉ. भारतेन्दु मिश्र ,हिंदी संस्कृत और अवधी भाषा के विशेषज्ञ, वरिष्ठ साहित्यकार और नवगीत के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। हमारे अनुरोध पर उन्होंने कार्यशाला-१० की अनुभूति में प्रकाशित रचनाओं पर अपनी संक्षिप्त समीक्षा लिख भेजी है। इसे पढ़कर हम सभी को अपने लेखन को सुधारने का अवसर मिलेगा इस आशा से इसका प्रकाशन किया जा रहा है। आगे भी इसी प्रकार विद्वानों के विचार प्रस्तुत किये जाते रहें इसका प्रयत्न कर रहे हैं।
- डॉ. भारतेन्दु मिश्र के विचार-
- कार्यशाला-१० में (विषय मेघ बजे) से नवगीतात्मकता की दृष्टि से दो गीत चुने जा सकते हैं। गिरि मोहन गुरु का गीत मेघ डाकिया और डाँ त्रिमोहन तरल का गीत छत पर नवगीत की प्रवृत्तियो के काफी निकट है।
- अन्य कई रचनाओ में छन्द का निर्वाह नही है। और अधिकांश कवियों के गीतों में संवेदना का नयापन नही दिखाई देता।
- नवगीत में टेक दोहराने की आवश्यकता नहीं लेकिन यह ध्यान रहे कि हर नवगीत को अनिवार्यत: छन्द की कसौटी पर खरा उतरना होता है क्योकि वह मूलत: गीत होता है।
- इसका अर्थ यह भी है कि हर गीत नवगीत नही होता। श्रेष्ठता की पहचान किसी एक लेख से या किसी एक किताब को पढकर नही की जा सकती यह तो साधना की बात है।
- मैने जिन दो गीतो को ठीक समझा उसके मूल मे नवगीत के लक्षणों को जोड़कर देखा जा सकता है। इन दोनो गीतो में- विषय तो वर्षा ही है लेकिन विचार, शिल्प और भाषा के प्रयोग से नवता स्वत: प्रकट हो रही है। गेयता नवगीत का अपरिहार्य गुण है। इस दृष्टि से भी ये दोनो गीत अच्छे है। इनकी संवेदना सार्वजनीन है। ये दोनो गीत अपने कथ्य से भी बोलते है।
आशा है भविष्य में सदस्य रचनाकार इस बात का ध्यान रखेंगे कि -
- विचार शिल्प और भाषा के प्रयोग में नवीनता आए।
- गेयता बनी रहे।
- कथ्य और संवेदना सार्वजनीन हो।
-- पूर्णिमा वर्मन
यही सही समय था, इस तरह की समीक्षा के लिए। रचनाकारों के मस्तिष्क में अब नवगीत की परिभाषा और ज्यादा साफ़ हो सकेगी तथा भविष्य में और भी अच्छे नवगीत पाठशाला पर मिलेंगे।
जवाब देंहटाएंविनम्र असहमति:
जवाब देंहटाएंअस्मीक्षक के मत में केवल २ नवगीत हैं शेष गीत... वैसे यह अपनी-अपनी मान्यताओं पर निर्भर है कि कौन किसे नवगीत माने या किन तत्वों को अधिक महत्व दे किन्हें कम. आपके द्वारा संकेतित तत्वों के अनुसार मुझे अधिकांश प्रविष्टियाँ नवगीत संवर्ग में रखने योग्य प्रतीत होती हैं. स्थाई और अंतरे में अलग-अलग छंदों का प्रयोग अधिकांशतः नहीं हो रहा है किन्तु यह अकेली नवगीत की पहचान नहीं है. शेष तत्व अधिकांश गीतकारों की रचनाओं में है.
आभार पूर्णिमा जी| आप की राय महत्वपूर्ण है| इसे गाँठ बाँध कर रखा जाएगा|
जवाब देंहटाएं