28 दिसंबर 2010

१५. तरीका नववर्ष मनाने का

यह भी
एक तरीका है
नववर्ष मनाने का

व्यूह धुंध का -
उसमें पैठो
खोजो सूरज को
छिपा आँख में बच्चे की
देखो उस अचरज को

एक पुण्य
यह करो
नदी में दीप सिराने का

ओस पड़ी जो पत्तों पर
उससे आँखें आँजो
यादें जो मिठबोली
उनको साँसों में साजो

सीखो गुर
कबिरा से
मन के ताने-बाने का

मीनारों के जंगल में भी
धूप भरो थोड़ी
उस पोथी को भी बाँचो
जो बाबा ने छोड़ी

बाँटो सबमें
जो प्रसाद है
दाख-मखाने का

-कुमार रवींद्र

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता जी धन्यवाद
    आप भी जुडे ओर साथियो को भी जोडे...
    http://blogparivaar.blogspot.com/

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  2. बहुत सुन्दर..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  3. बहुत खूब... जीवंत प्रतीकों से संपन्न हृद्स्पर्शी नवगीत. बधाई. इस सत्र का सर्वाधिक प्रभावी नवगीत.
    एक निवेदन

    व्यूह धुंध का -
    उसमें पैठो
    खोजो सूरज को
    छिपा आँख में बच्चे की
    देखो उस अचरज को

    एक पुण्य
    यह करो
    नदी में दीप सिराने का

    नदी में सिराये दीपों से हुए प्रदूषण से जल-जीव मर जाते हैं. हम जबलपुर में नर्मदा मैया में दीप सिराने के विरोध में सक्रिय है. अब दीप दान घाट की सीढ़ियों पर किया जाता है.

    जी अतीत से मिला
    न उसको अपना
    मूंदें अँखियाँ.
    नव आचारों का
    दीपक ले.
    उजयारी कर रतियाँ .

    लीक छोड़ कर
    काम करें
    नव रीत बनाने का...

    जवाब देंहटाएं
  4. व्यूह धुंध का -
    उसमें पैठो
    खोजो सूरज को
    छिपा आँख में बच्चे की
    देखो उस अचरज को

    एक पुण्य
    यह करो
    नदी में दीप सिराने का
    sunder likha hai
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  5. मीनारों के जंगल में भी
    धूप भरो थोड़ी
    उस पोथी को भी बाँचो
    जो बाबा ने छोड़ी

    बाँटो सबमें
    जो प्रसाद है
    दाख-मखाने का
    sunder
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं

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