यह भी
एक तरीका है
नववर्ष मनाने का
व्यूह धुंध का -
उसमें पैठो
खोजो सूरज को
छिपा आँख में बच्चे की
देखो उस अचरज को
एक पुण्य
यह करो
नदी में दीप सिराने का
ओस पड़ी जो पत्तों पर
उससे आँखें आँजो
यादें जो मिठबोली
उनको साँसों में साजो
सीखो गुर
कबिरा से
मन के ताने-बाने का
मीनारों के जंगल में भी
धूप भरो थोड़ी
उस पोथी को भी बाँचो
जो बाबा ने छोड़ी
बाँटो सबमें
जो प्रसाद है
दाख-मखाने का
-कुमार रवींद्र
बहुत सुंदर कविता जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआप भी जुडे ओर साथियो को भी जोडे...
http://blogparivaar.blogspot.com/
बहुत सुंदर गीत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब... जीवंत प्रतीकों से संपन्न हृद्स्पर्शी नवगीत. बधाई. इस सत्र का सर्वाधिक प्रभावी नवगीत.
जवाब देंहटाएंएक निवेदन
व्यूह धुंध का -
उसमें पैठो
खोजो सूरज को
छिपा आँख में बच्चे की
देखो उस अचरज को
एक पुण्य
यह करो
नदी में दीप सिराने का
नदी में सिराये दीपों से हुए प्रदूषण से जल-जीव मर जाते हैं. हम जबलपुर में नर्मदा मैया में दीप सिराने के विरोध में सक्रिय है. अब दीप दान घाट की सीढ़ियों पर किया जाता है.
जी अतीत से मिला
न उसको अपना
मूंदें अँखियाँ.
नव आचारों का
दीपक ले.
उजयारी कर रतियाँ .
लीक छोड़ कर
काम करें
नव रीत बनाने का...
व्यूह धुंध का -
जवाब देंहटाएंउसमें पैठो
खोजो सूरज को
छिपा आँख में बच्चे की
देखो उस अचरज को
एक पुण्य
यह करो
नदी में दीप सिराने का
sunder likha hai
badhai
rachana
मीनारों के जंगल में भी
जवाब देंहटाएंधूप भरो थोड़ी
उस पोथी को भी बाँचो
जो बाबा ने छोड़ी
बाँटो सबमें
जो प्रसाद है
दाख-मखाने का
sunder
badhai
rachana