29 जनवरी 2011

४. सड़क-मार्ग सा

सड़क-मार्ग सा फैला जीवन

कभी मुखर है, कभी मौन है।
कभी बताता, कभी पूछता,
पंथ कौन है? पथिक कौन है?
स्वच्छ कभी-
है मैला जीवन...
*

कभी माँगता, कभी बाँटता।
पकड़-छुडाता गिरा-उठाता।
सुख में, दुःख में साथ निभाता-
बिन सिलाई का
थैला जीवन...
*

वेणु श्वास, राधिका आस है।
कहीं तृप्ति है, कहीं प्यास है।
लिये त्रास भी 'सलिल' हास है-
तन मजनू,
मन लैला जीवन...
*

बहा पसीना, भूखा सोये।
जग को हँसा , स्वयं छुप रोये।
नित सपनों की फसलें बोए।
पनघट, बाखर,
बैला जीवन...
*

यही खुदा है, यह बन्दा है।
अनसुलझा गोरखधंधा है।
आज तेज है, कल मंदा है-
राजमार्ग है,
गैला जीवन-

*

काँटे देख नींद से जागे।
हूटर सुने,छोड़ जां भागे।
जितना पायी ज्यादा माँगे-
रोजी का है
छैला जीवन...

-संजीव सलिल

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर नवगीत जीवन को कोई पहलू अछूता नहीं रह गया। आचार्य जी को बधाई

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  2. यही खुदा है, यह बन्दा है।
    अनसुलझा गोरखधंधा है।
    आज तेज है, कल मंदा है-
    राजमार्ग है,
    गैला जीवन-
    sunder aur gahre bhav
    pura geet manmohak hai
    aap ko badhai
    saader
    rachana

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  3. सज्जन जी, रचना जी आप दोनों को धन्यवाद.

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  4. आप के नवगीतों को पढ़ना हमेशा ही आनंद दायक होता है| प्रस्तुत क्रिएशन में 'ग़ैला' शब्द का एक्सपेरिमेंट काफ़ी शानदार तरीके से किया है सर आपने| नमन|

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  5. वेणु श्वास, राधिका आस है।
    कहीं तृप्ति है, कहीं प्यास है।
    लिये त्रास भी 'सलिल' हास है-
    तन मजनू,
    मन लैला जीवन...


    बहुत सुंदर नवगीत...
    जीवन का हर छोर पकड़ने का सफलतम प्रयास...बधाई आपको सलील जी...

    नमन...

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  6. 'सडक-मार्ग सा फैला जीवन
    कभी मुखर है कभी मौन है
    कभी बताता कभी पूछता
    पन्थ कौन है? पथिक काउ है?'
    सलिल जी बहुत ही सुंदर कहा है आपने .
    Wondering सलिल जी के बदले नर्मदाजी क्यों उत्तर दे रहीं हैं

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