4 फ़रवरी 2011

७. मैं सड़क हूँ

मैं सड़क हूँ
अहम कब मुझमें भरा है,
मुझमें है केवल क्षमता|

ऊँच नीच के भेद ना जानूं
जात पात में अंतर क्या,
एक माटी के दीप हैं सारे
दीप - दीप में अंतर क्या,

बाँह पसारे खड़ी हूँ ऐसे
जैसे हो माँ की ममता|


रौंद रौंदकर चलते मुझको
डाल रहे कूड़ा-करकट,
लहूलुहान नित मुझको करते,
बन जाती जैसे मरघट,

साफ रखो घर के जैसा क्यूँ
बन जाते मेरे हंता |


जीवन भी एक सड़क है जिस पर
एक पथिक से चलते हम ,
गिरते पड़ते रहें सँभलते
मन ही मन गलते हैं हम,

प्रेम बढायें मन में हम भी
नयनों में लायें समता ||


--गीता पंडित

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया , सड़क के माध्यम से समदृष्टि की शिक्षा ..

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  2. जीवन भी एक सड़क है जिस पर
    एक पथिक से चलते हम ,
    गिरते पड़ते रहें सँभलते
    मन ही मन गलते हैं हम,

    प्रेम बढायें मन में हम भी
    नयनों में लायें समता ||
    bahut sunder
    badhai
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  3. सत्यम शिवम जी.
    आपकी आभारी हूँ....


    शुभ कामनाएँ...

    जवाब देंहटाएं
  4. शारदा जी,धर्मेन्द्र जी,रचना जी...
    आभार आप सभी का ...


    शुभ कामनाएँ...

    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  5. रूप चंद शास्त्री जी को
    जन्मदिन की ढेर सारी शुभ कामनाएँ..

    कहते हैं देर आयद दुरुस्त आयद..


    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब! गीताजी बढ़िया है.

    जीवन भी एक सड़क है जिस पर
    एक पथिक से चलते हम ,
    गिरते पड़ते रहें सँभलते
    मन ही मन गलते हैं हम,

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