मैं सड़क हूँ
अहम कब मुझमें भरा है,
मुझमें है केवल क्षमता|
ऊँच नीच के भेद ना जानूं
जात पात में अंतर क्या,
एक माटी के दीप हैं सारे
दीप - दीप में अंतर क्या,
बाँह पसारे खड़ी हूँ ऐसे
जैसे हो माँ की ममता|
रौंद रौंदकर चलते मुझको
डाल रहे कूड़ा-करकट,
लहूलुहान नित मुझको करते,
बन जाती जैसे मरघट,
साफ रखो घर के जैसा क्यूँ
बन जाते मेरे हंता |
जीवन भी एक सड़क है जिस पर
एक पथिक से चलते हम ,
गिरते पड़ते रहें सँभलते
मन ही मन गलते हैं हम,
प्रेम बढायें मन में हम भी
नयनों में लायें समता ||
--गीता पंडित
बहुत बढ़िया , सड़क के माध्यम से समदृष्टि की शिक्षा ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत। बधाई
जवाब देंहटाएंजीवन भी एक सड़क है जिस पर
जवाब देंहटाएंएक पथिक से चलते हम ,
गिरते पड़ते रहें सँभलते
मन ही मन गलते हैं हम,
प्रेम बढायें मन में हम भी
नयनों में लायें समता ||
bahut sunder
badhai
saader
rachana
सत्यम शिवम जी.
जवाब देंहटाएंआपकी आभारी हूँ....
शुभ कामनाएँ...
शारदा जी,धर्मेन्द्र जी,रचना जी...
जवाब देंहटाएंआभार आप सभी का ...
शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित
bahut achchi.
जवाब देंहटाएंरूप चंद शास्त्री जी को
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की ढेर सारी शुभ कामनाएँ..
कहते हैं देर आयद दुरुस्त आयद..
गीता पंडित
सड़क के दर्द को बखूबी कहा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! गीताजी बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंजीवन भी एक सड़क है जिस पर
एक पथिक से चलते हम ,
गिरते पड़ते रहें सँभलते
मन ही मन गलते हैं हम,
उद्देश्यपूर्ण अच्छी रचना... बधाई.
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