5 अप्रैल 2011

५. समाचार पत्र तक नहीं आया

अरे अभी
समाचार-पत्र तक नही आया
तनिक और सोने दो।

धुआँ-धार साँस लिए
कानो मे शोर भरे
लुटा -पिटा चुका –बुझा
देर रात लौटा था
पौ फटने तक ठहरो
कुछ उजास होने दो।

बबुआ की खाँसी मे
रात भर नही सोया
मुनिया के रिश्ते की
बात भी चलानी है
अभी बहुत समय पडा
करवट ले लेने दो।

रोज सुबह पलकों से
इन्द्रधनुष झर जाते
रोटी का डिब्बा ले
बस पर चढ जाता हूँ
पल भर तो इन आँखों में
गुलाब बोने दो।


-भारतेन्दु मिश्र
(नई दिल्ली)

11 टिप्‍पणियां:

  1. भाई भारतेन्दु मिश्र जी बहुत सुंदर गीत के लिए आपको बधाई बहुत जमाना हुआ आपसे महालेखाकार कार्यालय इलाहाबाद के पास भाई यश जी के साथ मिले हुए |

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  2. भाई भारतेन्दु मिश्र जी, पूर्णिमा जी से आप के बारे में जानने को मिला था| आप वाकई आम इंसान के सरोकारों को अभिव्यक्त करते हैं अपने नवगीतों में| कॉमन मेन मुख्य विषय है आप के इस नवगीत का भी| बहुत बहुत बधाई आपको श्रीमान|

    आपका समस्या पूर्ति ब्लॉग पर स्वागत है:-
    http://samasyapoorti.blogspot.com/2011/04/blog-post.html

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  3. "पल भर तो इन आँखों में गुलाब बोने दो- बहुत सुन्दर. पूरा गीत ही सुन्दर है. आशावादी अभिव्यक्ति. प्रस्तुतकर्ता एवं मिश्राजी आप दोनों को बधाई

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  4. रोज सुबह पलकों से
    इन्द्रधनुष झर जाते
    रोटी का डिब्बा ले
    बस पर चढ जाता हूँ
    पल भर तो इन आँखों में
    गुलाब बोने दो।
    bahut khoob
    badhai
    rachana

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  5. प्रिय भारतेंदु भाई
    'रोज़ सुबह पलकों से / इन्द्रधनुष झर जाते' - हाँ, यही तो है आज की कविता की नियति | इन्हें कैसे संजोया जाये ? गीत, सच में, बहुत अच्छा बन पड़ा है | इस गीत हेतु मेरा हार्दिक साधुवाद और आभार स्वीकारें | आशा है अब आप स्वस्थ होंगे |
    आपका
    कुमार रवीन्द्र

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  6. बहुत सुंदर नवगीत, आम इंसान से सीधा सारोकार रखता हुआ। इसे लिखने के लिए भारतेन्दु जी को और प्रस्तुत करने के लिए पूर्णिमा जी को बहुत बहुत बधाई

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  7. आम आदमी के जीवन से जुडा
    सुंदर नवगीत...


    आभार आपका....भारतेंदु जी..

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  8. रोज सुबह पलकों से
    इन्द्रधनुष झर जाते
    रोटी का डिब्बा ले
    बस पर चढ जाता हूँ
    पल भर तो इन आँखों में
    गुलाब बोने दो।


    KYA BAAT HAI

    B E H A T A R E E N

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  9. इस नवगीत की सबसे रोचक बात यह है कि इसमें अंतिम पंक्ति के सिवा कहीं भी तुक मिलाने की कोशिश नहीं की गई है। इसके बावजूद पंक्तियों की गेयता में कहीं रुकावट नहीं महसूस होती। पाठशाला को धन्यवाद इन नव प्रयोगों से जन सामान्य का परिचय कराने के लिये। भारतेन्दु जी तो सिद्धहस्त रचनाकार हैं ही, बधाई !

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  10. सहमत हूँ सुरुचि आपके विचारों से... रचनाकार को मेरी भी बधाई !
    -पूर्णिमा वर्मन

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  11. सभी मित्रो को आभार जिन्होने मेरे नवगीत को लेकर टिप्पणी की।पूर्णिमा जी के प्रति विशेष आभार कि उन्होने साग्रह इस गीत को मँगवाया और नवगीतपाठशाला मे शामिल किया।

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