16 अप्रैल 2011

१५. खबर छपी अखबारों में

साहित्यिक गतिविधियाँ सारी
हुई लुप्त अंधियारों में
हत्या और बलात्-कर्म की
खबर छपी अखबारों मे

तानाशाही और मनमानी
चौथा खम्भा करता है
छँठे हुए इन पढ़े लिखों से
तन्त्र प्रजा का डरता है
तूती की आवाज़ दब गई
कर्कश ढोल-नगाड़ो में

कोकिल के मीठे सुर केवल
डाली तक ही सीमित है
गंगा जी की पावन धारा
मैली सी है-दूषित है
काग सुनाते बेढंगे स्वर
आँगन और चौबारों में

समाचार हैं घिसे-पिटे से
विज्ञापन से भरे पृष्ठ हैं
रोज-रोज वो ही छाये हैं
जो दुनिया में महाभ्रष्ट हैं
नाच रही है नग्न नर्तकी
सड़क और गलियारों में

-रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
(खटीमा, उत्तराखंड, भारत)

11 टिप्‍पणियां:

  1. रचनाकार का नाम नहीं है। बेहद अच्‍छी रचना है, बधाई।

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  2. अपनी टिप्पणी के साथ यह वार्तालाप भी प्रस्तुत कर रहा हूँ।
    --
    नवगीत की पाठशाला पर रचनाकार का नाम अब दिखाई दने लगा है।
    आपने बहुत सही कमेंट किया था

    Ajit
    आपका है क्‍या?

    मैं
    http://navgeetkipathshala.blogspot.com/2011/04/blog-post_16.html

    भाषा शैली से तो मेरा ही लग रहा है
    10:36 पूर्वाह्न बजे शनिवार को प्रेषित

    Ajit
    गूगल रीडर से पढते हुए एक-दो पंक्तियां अच्‍छी लगी तो पूरा गीत पढा गया और मन को भा गया। लेकिन लेखक का नाम नहीं था तो पूछ ही लिया। वाकयी में बहुत अच्‍छा गीत बन पड़ा है।
    10:37 पूर्वाह्न बजे शनिवार को प्रेषित

    मैं
    मुझे तो लिखने से मतलब है, आपको अच्छा लगा, कृतज्ञ हूँ।

    Ajit
    लिखते रहिए, ऐसे में ही अच्‍छी रचना जन्‍म लेती है

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  3. आदरणीय शास्त्री जी का साहित्य के लिए समर्पण सहज ही स्तुत्य है| आप ने इस नवगीत में 'रोज रोज वो ही छाए हैं, जो दुनिया में महाभ्रष्‍ट हैं" हिस्सा बहुत ही जोरदार लिया है|

    कोकिल के मीठे सुर.............खरबूज और तरबूज से बेहद लगाव रखने वाले शास्त्री जी बहुत सही लिखा है आपने| अब तो बरसों हो जाते हैं पक्षियों का कलरव सुने|

    मिट्टी की सौंधी सुगंध समेटे, इस खुशबूदार नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई शास्त्री जी|

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  4. बहुत सुंदर नवगीत, शास्त्री जी को हार्दिक बधाई

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  5. सुन्दर नवगीत के लियें
    आप बधाई के पात्र हैं....शास्त्री जी....


    .आभार..

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  6. "मयंक" तो वैसे ही चमकते हैं.
    अजित गुप्ता जी, आपको रूपचंद्र शास्त्री जी "मयंक" का नाम क्यों दिखाई नहीं दिया. --

    गीत बहुत ही सुंदर है मयंक साहब.

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  7. शारदा मोंगा जी, शास्‍त्री जी का नाम मेरी टिप्‍पणी के बाद जुडा है, यदि अन्‍य टिप्‍पणी भी आपने पढी होती तो यह उलाहना नहीं होता।

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  8. आदरणीय शास्त्री जी,
    चौथे खम्भे पर अच्छा कटाक्ष या कहूँ आक्रमण किया है आपने। एक अच्छे नवगीत हेतु बधाई! अन्य आयाम भी जुड़्ते तो और अच्छा लगता।
    पुनः बधाई!
    सादर

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  9. अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ जी!
    गीत का आकार बढ़ाया जा सकता है
    मगर नवगीत में दो या तीन अन्तरे ही हों
    तो ज्यादा मजा आता है!

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  10. बहुत बहुत बधाई, शायद यह अकेला नवगीत है इस कार्यशाला पर जिस पर इतनी बातें हुईं। अच्छा लगा।

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