द्वंद-द्वेष-दुख दुराचार हैं
भाँति भाँति के हहाकार हैं
आज के यही समाचार हैं
वोट दे रहे औ ठगा रहे
टेक्स भर रहे, कष्ट पा रहे
लीडरान से मात खा रहे
यूँ लगे कि ज्यूँ गुन्हागार हैं
आज के यही समाचार हैं
रौबदार सब कोट-टाइयाँ
लोकतंत्र की दे दुहाइयाँ
गल्फ़ में लड़ाते लड़ाइयाँ
निम्न, तेल से, रक्त-धार हैं
आज के यही समाचार हैं
डिग्रियाँ बनीं फाँस कंठ की
आज सब सुनें बात संठ की
लुप्त हो रही जाति लंठ की
सुप्तप्राय से सरोकार हैं
आज के यही समाचार हैं
-नवीन चतुर्वेदी
(मुंबई)
नवीन जी सुंदर नवगीत के लिए बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंसटीक नवगीत
जवाब देंहटाएंडिग्रियाँ बनीं फाँस कंठ की
जवाब देंहटाएंआज सब सुनें बात संठ की
लुप्त हो रही जाति लंठ की
सुप्तप्राय से सरोकार हैं
आज के यही समाचार हैं
सुंदर नवगीत के लिए बधाई
बहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
जवाब देंहटाएंबधाई ......
गीत का भाव पक्ष सशक्त है. हहाकार, गुन्हागार, ज्यूँ, संठ आदि शब्द शब्द कोष में नहीं हैं.
जवाब देंहटाएंकुछ नए शब्द प्रयोगों के साथ यह नवगीत सामाजिक सरोकारों की ओर दृष्टि आकर्षित करने में सफल रहा है। नवीन जी दिन पर दिन नए सोपानों की ओर बढ़ रहे हैं। बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी मैने आप के द्वारा चिन्हित किए गये शब्द विन्यास और उस के बारे में आप के द्वारा लक्षित आपत्ति सूत्रों के साथ साथ आप के द्वारा प्रदत्त अमृत तुल्य परामर्श को अपनी मस्तिष्क की सूक्ष्म शिराओं में प्रवेश करा दिया है| आप का यह उदबोधन [क्षमा करें 'द' के नीचे 'हलन्त' नहीं आ पा रहा] अनेक इच्छुक शोधार्थियों के लिए लाभ का मार्ग प्रशस्त करेगा| बहुत बहुत आभार आचार्य जी|
जवाब देंहटाएंपरन्तु ये मैं ज़रूर कहना चाहूँगा कि मैं काव्य के किसी भी प्रारूप में भाषाई आरक्षण को स्वीकार नहीं कर पाता|
धर्मेन्द्र भाई, अदरणीया संगीता जी, सुरुचि जी, रचना जी एवम् संतोष जी
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए सहृदय आभार