ढोल पीट कर
पोत लीप कर
समाचार के बाजे बजते
सच के कोई मूल्य न बचते
बिके मीडिया के महामहिम
टीवी पर हावी है पश्चिम
जश्न हो रहा है सातों दिन
चमक दमक में भूले रहकर
आम जनों के कटें न दुर्दिन
फिल्म दिखा कर
क्रिकेट खिला कर
दुख पर मरहम पट्टी रखते
दर्द देश के जरा न घटते
अपनी भाषा लगी ठिकाने
अपने सारे पर्व बिराने
अपनों से ही गए ठगाने
हम तो केवल कठपुतली है
गाते हैं अँगरेजी गाने
खाल खींच कर
आँख मीच कर
डालर को जेबों में भरते
स्वाभिमान के चिथड़े करते
-पूर्णिमा वर्मन
(शारजाह, संयुक्त अरब इमारात)
shandar prahar hai ..... purnima ji .... shubhkamanayen
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा जी की कलम से निकला एक और शानदार नवगीत है। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा कटाक्ष है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव ..
आभार पूर्णिमा दी..
purnimaji bahut shaandaar kataaksh hai.. badhai.
जवाब देंहटाएंअपनी भाषा लगी ठिकाने
जवाब देंहटाएंअपने तीज त्योहार बिराने
अपनों से ही गए ठगाने
हम तो केवल कठपुतली है
गाते हैं अँगरेजी गाने
विदेशी मानसिकता पर कड़ा प्रहार, सुन्दर नवगीत के लिये पूर्णिमा जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगीत पसंद करने वाले सभी पाठकों, सदस्यों, सहयोगियों को मेरा हार्दिक आभार- पूर्णिमा वर्मन
जवाब देंहटाएंआपका यह नवगीत पहले नवगीतों से काफी हटकर है । आपने बहुतों की खबर इस नवगीत में ली है । किसी भी कटु सत्य से आँख मूँदना असम्भव है । बड़े खतरे की ओर भी आपने संकेत कर दिया है । गहरे व्येयंग्य और व्यथा के कारण ये पंक्तियाँ तो बहुत अच्छी बन गई हैं- अपनी भाषा लगी ठिकाने
जवाब देंहटाएंअपने सारे पर्व बिराने
अपनों से ही गए ठगाने
हम तो केवल कठपुतली है
गाते हैं अँगरेजी गाने
वाह... वाह... सशक्त रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा जी, आप झाँसी की रानी हो रही हैं वो मधुर मधुर गीतों वाली छवि बदलती दिख रही है। :) नए रूप का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंहा हा क्या बात लिखी है आपने सुरुचि जी... मज़ा आया आपकी चुटकी का...
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