7 मई 2011

प्रतिक्रिया- कार्यशाला-१५

नवगीत पाठशाला- १५ में शामिल मेरे दोनों नवगीतों को जिस स्नेह से कवि-बन्धुओं ने स्वीकारा-दुलारा, उसके लिए मैं उन सभी का आभारी हूँ। 'अभिव्यक्ति-अनुभूति' परिवार का भी आभार, जिन्होंने मेरी कविताओं को सबके लिए सुलभ बनाया। नवगीतों की इस पाठशाला में नये कथ्य और उसकी कहन की कई नई बानगियों से परिचय हुआ। कुछ रचनाओं को छोड़कर अधिकांश ने प्रभावित किया। मेरा एक विनम्र निवेदन है पाठशाला के संयोजक-संपादकों से कि वे विषय तो दें, किन्तु इसे समस्या-पूर्ति की तरह किन्हीं शब्दों या वाक्यांशों से बाँधें नहीं। संभवतः कई समर्थ और स्थापित नवगीत-रचनाकार इसी बंदिश की वज़ह से पाठशाला से जुड़ने में संकोच करते हैं और उनकी प्रेरक एवं समृद्ध कहन से नये रचनाकार वंचित रह जाते हैं। साथ ही इससे एक प्रकार के रीतिकालिक काव्य-विधान को भी बल मिलता है। आज की कविता सहजता की हिमायती है और उसकी स्वाभाविकता ही उसकी पहचान है।

स्नेह-नमन सहित
आपका
कुमार रवीन्द्र

4 टिप्‍पणियां:

  1. "मेरा एक विनम्र निवेदन है पाठशाला के संयोजक-संपादकों से कि वे विषय तो दें, किन्तु इसे समस्या-पूर्ति की तरह किन्हीं शब्दों या वाक्यांशों से बाँधें नहीं।"
    आपका यह सुझाव सर्वथा उचित और मानने लायक है.

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  2. रवीन्द्र जी आपकी प्रतिक्रिया हम सभी का उत्साह वर्धन करती है

    बहुत बहुत शुक्रिया

    जो रचनाएं आपको पसंद नहीं आई उन पर कुछ कहते तो सभी को बहुत कुछ सीखने को मिलता

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  3. आदरणीय कुमार रवीन्द्र जी की टिप्पणी को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। एक समय में शम्भुनाथ सिंह जी ने समस्या पूर्ति के लिए लिखी गयी गीत रचनाओ को नवगीत की श्रेणी मे रखने से इनकार किया था। सम्पादको से निवेदन है कि इसके बजाय विषय या अवसर के अनुकूल गीत आमंत्रित करें। अन्यथा नवगीत की पाठशाला का महत्व सन्दिग्ध हो जायेगा।

    भारतेन्दु मिश्र

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  4. आदरणीय रवीन्द्र जी, भारतेंदु जी, तिवारी जी, आपके सुझाव / कथन से सहमति है। नवगीत के मूल में पारम्परिक बंधन से मुक्ति की छटपटाहट है और यही अन्तर गीत और नवगीत के मूल में है। नवगीत की कार्यशाला का उद्देश्य है कि नवगीत के प्रति नये रचनाकारों और सामान्य पाठकों का रुझान बढ़े और कुछ बहुत अच्छे रचनाकार जिनके अन्दर नवगीत का बीजांकुर सुषुप्तावस्था में सोया पड़ा है उसे हवा, पानी और रोशनी देकर अंकुरित किया जाये। हम जो विषय दे रहे हैं वह इसलिए कि नए रचनाकार भटकें नहीं, उन्हें नवगीत लिखने के लिए एक दिशा मिले और मौलिकता भी बनी रहे। हम यह भी आग्रह नहीं करते हैं मुखड़े में यह शब्द होना चाहिये इसलिये रचनाकार बंधन मुक्त होकर अपनी दिशा चुन सकते हैं।

    नए रचनाकारों को यदि नवगीत का विषय नहीं बताया जायेगा तो वे भटकेंगे अथवा किसी अच्छे नवगीतकार के नवगीत से प्रभावित होकर उसके नवगीत की प्रतिछवि अपने नवगीत के नाम पर लिख डालेंगे इसलिए। प्रतिष्ठित नवगीतकारों से दिए गए विषय पर नवगीत लिखने का आग्रह इसलिए किया जा रहा है कि नए रचनाकार यह समझ सकें कि विषय विशेष पर कितने कोणों से कल्पना की जा सकती है और एक समर्थ नवगीतकार कितने साधारण से विषय पर भी कितना अच्छा लिख सकता है।

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