लाए हैं पुन: दिवस आस के, विश्वास के
फूल ये पलाश के
सज गया धरा का धरातल विशेष तौर पर
अलि-पिक के मधुर स्वर आज आम्रबौर पर
लताएँ सब लिपट गई हैं,
सन्निकट स्वगाछ से
पीतपत्र झड. गए, छा गए नवल-नवल
स्वच्छ जल के दर्पणों में,रूप देखते कमल
कुमुदिनी के रात-दिन,
हो गए सुहास के
पर्णहीन सेमलों में फूल-फूल रह गए
फूल भी तो शीघ्र ही एक-एक झड़ गए
पल्लवित-फलित हुए,
देख दिन विनाश के
दिक्-दिगन्त में छटा है छा गई वसन्त की
बांधती स्वपाश में हैं,टोलियाँ अनंग की
देखो,दिन ये चार ही हैं,
मधुर मधुरमास के
-राममूर्ति सिंह 'अधीर'
फूल ये पलाश के
सज गया धरा का धरातल विशेष तौर पर
अलि-पिक के मधुर स्वर आज आम्रबौर पर
लताएँ सब लिपट गई हैं,
सन्निकट स्वगाछ से
पीतपत्र झड. गए, छा गए नवल-नवल
स्वच्छ जल के दर्पणों में,रूप देखते कमल
कुमुदिनी के रात-दिन,
हो गए सुहास के
पर्णहीन सेमलों में फूल-फूल रह गए
फूल भी तो शीघ्र ही एक-एक झड़ गए
पल्लवित-फलित हुए,
देख दिन विनाश के
दिक्-दिगन्त में छटा है छा गई वसन्त की
बांधती स्वपाश में हैं,टोलियाँ अनंग की
देखो,दिन ये चार ही हैं,
मधुर मधुरमास के
-राममूर्ति सिंह 'अधीर'
उत्तम नवगीत.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रकृति वर्णन....पर इस वक्त तो वर्षा ऋतु है...बसंत का समय कहाँ है...
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इस रचना में ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत है। राममूर्ति जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंलाए हैं पुन: दिवस आस के, विश्वास के,फूल ये पलाश के। पुरानी स्मृतियों से जोड़ने वाला यह नवगीत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंपर्णहीन सेमलों में फूल-फूल रह गए
जवाब देंहटाएंफूल भी तो शीघ्र ही एक-एक झड़ गए
पल्लवित-फलित हुए,
देख दिन विनाश के
सुंदर अभिव्यक्ति प्रभावी गीत
रचना
अधीर जी ! बहुत सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक वधाई।
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