खिलते हुए पलाश
बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार
था इक कल्पना भर
हाट में बाक़ायदा
तुम स्थान पाते थे बराबर
अब कहाँ वो रंग
वो रंगीन भू-आकाश
खिलते हुए पलाश
मख अगन सा दृष्टिगोचर
है तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
पर न हारे तुम तनिक भी
औ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश
- नवीन चतुर्वेदी
पर न हारे तुम तनिक भी
जवाब देंहटाएंऔ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश
सुंदर अभिव्यक्ति
सादर
रचना
बहुत सुंदर नवगीत है नवीन भाई, बधाई स्वीकार कीजिए।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच
सुन्दर नवगीत....
जवाब देंहटाएंनए बिम्बों का अच्छा प्रयोग
Palash wah bhee khilta hua muze behad pasnad hai aur aapki ye kawita bhee.
जवाब देंहटाएंमख अगन सा दृष्टिगोचर
जवाब देंहटाएंहै तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
पर न हारे तुम तनिक भी
औ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश
असरदार अभिव्यक्ति...