27 जून 2011

२३. दिन टेसू के फूलों वाले


दिन
टेसू के फूलों वाले कब आयेंगे
पता नहीं

सूरज-चंदा से हमजोली
नहीं रही अब अपने बस की
देह बुढ़ाई -
इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
दरस-परस की
आम-गुलमोहर
चैती-आल्हा कब गायेंगे
पता नहीं

आबोहवा धरा की बदली
बेमौसम होते हैं पतझर
जो पलाश-वन में रहते थे
महानगर में हैं वे बेघर
महाहाट से
सपने साहू कब लायेंगे
पता नहीं

वृन्दावनवासी देवा भी
बैठे भौंचक सिंधु-किनारे
आने वाले पोत वहीं हैं
जिनसे बरसेंगे अंगारे
बरखा के
शीतल-जल मेघा कब छायेंगे
पता नहीं

- कुमार रवीन्द्र

13 टिप्‍पणियां:

  1. नयी कहन और ताज़गी से भरपूर इस सुन्दर गीत के लिये आपको तथा पूर्णिमा जी को बधाई.

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  2. नयी कहन और ताज़गी से भरपूर इस सुन्दर गीत के लिये आपको तथा पूर्णिमा जी को बधाई.

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  3. कुमार रवीन्द्र जी का एक और शानदार नवगीत इस पाठशाला को शोभायमान कर रहा है। बहुत बहुत बधाई। इसे रचकर नए लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए साधुवाद।

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  4. आबोहवा धरा की बदली
    बेमौसम होते हैं पतझर
    जो पलाश-वन में रहते थे
    महानगर में हैं वे बेघर

    क्या कहने हैं इस नवगीत के, बहुत सुन्दर नवगीत है बधाई

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  5. आम-गुलमोहर
    चैती-आल्हा कब गायेंगे
    पता नहीं

    सामयिक सन्दर्भ में विसंगतियों को इंगित करता मौलिक बिम्बों से सज्जित सार्थक नव गीत. बधाई.

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  6. आबोहवा धरा की बदली
    बेमौसम होते हैं पतझर
    जो पलाश-वन में रहते थे
    महानगर में हैं वे बेघर
    महाहाट से
    सपने साहू कब लायेंगे
    पता नहीं
    बहुत सुन्दर नवगीत है मौलिक बिम्बों के क्या कहने
    बहुत बहुत बधाई
    saader
    rachana

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  7. बहुत सुन्दर नवगीत के लिए कुमार रवीन्द्र जी को वधाई। इन शब्दों में बहुत कुछ कह दिया-
    आबोहवा धरा की बदली
    बेमौसम होते हैं पतझर
    जो पलाश-वन में रहते थे
    महानगर में हैं वे बेघर

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  8. आबोहवा धरा की बदली
    बेमौसम होते हैं पतझर
    जो पलाश-वन में रहते थे
    महानगर में हैं वे बेघर |


    सुन्दर नवगीत ...
    कुमार रवीन्द्र जी को वधाई...

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  9. 'नवगीत पाठशाला' -१६ का समापन युवा नवगीतकार भाई यश मालवीय के समीक्षात्मक आलेख से - मेरे दो नवगीतों को उसमें पूरे मनोयोग और समादर से स्वीकारा गया, यह मेरा सौभाग्य| पाठशाला की उपलब्धि यह रही कि उसमें नवगीत के लगभग सभी स्वर, कहन-भंगिमाएँ एवं स्वरूप एक साथ उपस्थित मिले| साथ ही मेरे जैसे बुढ़ा गये नवगीतकारों से लेकर नये उपस्थित हुए सभी वय के रचनाकारों का समान योगदान रहा| नवगीत पाठशाला के माध्यम से 'अनुभूति' परिवार जो नवगीत के इतिहास के नये पृष्ठ लिख रहा है, उसके लिए सुश्री पूर्णिमा वर्मन एवं उनके सभी सहयोगियों को मेरा हार्दिक साधुवाद!
    मेरा एक विनम्र सुझाव है - पाठशाला में किसी शब्द अथवा वाक्यांश को आधार बनाने की अपेक्षा यदि किसी विषय अथवा समकालीन सन्दर्भ पर उसे केन्द्रित किया जाये, तो उससे नये रचनाकारों को नवगीत की वर्तमान दिशा और दशा पर दृष्टि डालने का अधिक समुचित अवसर प्राप्त हो पायेगा| आशा है मेरे इस मन्तव्य को अन्यथा नहीं लिया जायेगा|
    कुमार रवीन्द्र

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  10. पलाश जीवन में अतिशय संघर्ष करने वाले आम आदमी का प्रतीक बनकर भारतीय मनीषा के समक्ष उभरा है। लोक मानस में पलाश सदियों से रचा बसा है। गाँव के खेतिहर मजदूर से लेकर चरवाहों तक पलाश की पैठ है, या यूँ समझिये कि पलाश भी उन्हीं का हमराही है, उन्हीं में से एक है ...... जो सदियों से वहीं के वहीं पड़े हुये हैं " ढाक के तीन पात" बनकर। जबकि दावा यह किया जा रहा है कि सकल देश की तरक्की हो चुकी है, परन्तु कवि तो कवि है वह खुद देखता है सि्र्फ अपनी आँखों से और जो देखता है उसे लिखने की हिम्मत भी एक कवि ही रखता है। यही संकेत कुमार रवीन्द्र के इस पलाशीय अभिव्यक्ति से युक्त नवगीत में दिखाई दे रहा है-
    रोज़ बाँचते हम ख़बरों में
    सकल देस की हुई तरक्की
    बोतल-बंद बिक रहा पानी
    बिकी रात अम्मा की चक्की

    कुमार रवीन्द्र जी को बहुत बहुत वधाई विशेषकर इस नवगीत के लिये।
    (पाठशाला के क्रमांक पर प्रकाशित)
    और कवि की सम्पूर्ण चिन्ता इस नवगीत में लोक के आवरण में घुल मिल जाती है। प्रकृति के साथ सामंजस्य को हमने चुनौती तो बहुत पहले देनी शुरू कर दी थी परन्तु अब तो हम उससे दो दो हाथ करने की मूर्खता करके भस्मासुरी कदम उठाने जा रहे हैं। प्रकृति से हम दूर दूर दूर और दूर होते चले जा रहे हैं। जीवन में लोक तत्व निरंतर छीजते जा रहे हैं, आल्हा, ढोला, चैती, कजरी, विरहा आधुनिकता के किसी ब्लैक होल में समाहित होते जा रहे हैं। यही सब चिन्ता कुमार रवीन्द्र जी के नवगीत की अनुगूँज में सुदूर तक रची बसी प्रतीत हो रही है।
    "सूरज-चंदा से हमजोली
    नहीं रही अब अपने बस की
    देह बुढ़ाई -
    इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
    दरस-परस की
    आम-गुलमोहर
    चैती-आल्हा कब गायेंगे
    पता नहीं"

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  11. आदरणीय कुमार रवीन्द्र जी अद्भुत गीत है |आपको प्रणाम

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