रात बिताई तन्हाई में, दिन गुजरा अंधियारों में।
ओझल हो गई गाँव की गलियाँ, शहर के चाँद-सितारों में।।
भीड़ बहुत है लेकिन कितनी
निर्जन खाली-खाली है।
चाहत का तो नाम नहीं है,
मुख पर भद्दी गाली है।
चेहरे-चेहरे पर लाचारी, शामिल हैं बीमारों में।
साल बिताए, महिने बीते,
बीती सारी उम्र यहाँ।
शहर में रहकर भूल गए सब,
कितने अपने, कौन-कहाँ।
छुपी हकीकत बाहर आती, होश नहीं किरदारों में।
चलो किसी दिन तो आएगा,
भूला-बिसरा गाँव मेंरा।
शहर-शहर और बस्ती-बस्ती,
चल चल हारा पाँव मेरा।
मगर नहीं मिल पाया साथी कोई एक हजारों में।
-महेश सोनी
भोपाल।
महेश जी को सुंदर नवगीत के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंsundar geet hai
जवाब देंहटाएंअब शहर में चांद सितारे भी कहां दिखते हैं :)
जवाब देंहटाएंकथ्य के धरातल पर यह रचना अच्छी है, पर छंद में कई ज़गह अटकाव है - मात्राएँ कम-ज्यादा हुई हैं| इस नाते इसे एक नवगीत मानने में मुझे संकोच है|
जवाब देंहटाएंमहेश सोनी जी का यह गीत की दृष्टि से ठीक है। नवगीत गीत का ही आगामी संस्करण है जिसकी अपनी कुछ विशेषताएँ हैं जिससे गीत और नवगीत में अंतर दिख जाता है। नवगीत की पाठशाला में इसी अंतर को हम सब मिलकर समझने और उसके अनुरूप नवगीत लिखने का अभ्यास कर रहे हैं इसलिये किसी टिप्पणी को सकारात्मक रूप में लेना ही हम सबका उद्देश्य है। रमेश सोनी जी का यह गीत नवगीत भी बन सकता है इसके लिये नवगीतकार यदि यह बता सकें कि क्या कुछ थोड़ा बहुत परिवर्तन कर देने से यह कितना अच्छा नवगीत बन सकता है। इससे अन्य रचनाकारों को भी प्रेरणा मिल सकेगी।
जवाब देंहटाएंमैं व्योम जी के विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ.जब हम कोई नवगीत पढ़ते हैं तो नए कथ्य,नए उपमानों तथा बात कहने के नए तरीके को ढूँढ़ते हैं.ये नवगीत की कुछ आधारभूत विशेषताएँ हैं जिनका हमें पालन करना चाहिए.कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि सभी में नवता हो परन्तु परंपरागत बात को नए तरीके से कहना चाहिए जिससे उसमें समसामयिकता बनी रहे.जो कुछ सर्वभोमिक होता है वह नवगीत में कहना उचित है परन्तु जो बातें आज के लिय प्रासंगिक न हों उन्हें यदि कहने के अंदाज़ से प्रासंगिक बना सकें तो कहें अन्यथा उनसे बचें .उदाहरण के लिए चाँद- सितारों का प्रयोग परम्परागत है; यद्यपि इसका तात्पर्य वृहद् है परन्तु आज के शहरों में चाँद-सितारे दिखाई नहीं देते यह हकीकत है. इसी को प्रासंगिक कैसे बनाते हैं देखें -
जवाब देंहटाएंदिन गुजरा अंधियारों में
रात बिताई तन्हाई से,
ओझल हो गई गाँव की गलियाँ
शहर के चाँद-सितारों से ।।
गीत और नवगीत की इन्हीं बारीकियों को हम इस पाठशाला में सीखते हैं . आशा है महेश जी इसे सकारात्मक रूप में लेंगे. और अंत में एक अच्छी रचना के लिए महेश जी को शुभकामना .
Achchha Navgeet he.
जवाब देंहटाएंTRILOK SINGH THAKURELA
यह अच्छी रचना गीत के अधिक समीप है इसमें कोई संदेह नहीं. नवगीत के तत्वों भाषिक टटकापन, देशज शब्द, जमीनी प्रतीक, स्थाई व अंतरे में अलग-अलग पदभर की पंक्तियाँ आदि को समझ कर मिश्रित किया जाए तो यह प्रभावी नवगीत हो जाएगा.
जवाब देंहटाएंसुंदर,
जवाब देंहटाएंमनमोहक
अच्छा लगा आपको पढ़ना ...
आभार...
कार्यशाला -17 में शामिल गीत के संबंध में।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सभी विद्वानों और नवगीतके जानकारों को मेरा हार्दिक नमन। वास्तव में गीत लिखना जितना कठिन नहीं उससे कहीं अधिक तो विद्वानों के सामने गीत को रखकर उस पर उनकी टीका-टिप्पणी अर्थात बारीकियों को समझना बेहद कठिन है। लेकिन मैं दिल से सभी का आभारी हूं कि उन्होंने नवगीत के बारे में बारीकियों से अवगत कराया। हालांकि जिन बंधुओं ने मेरी रचना धर्मिता को प्रोत्साहित किया उनका तो आभारी हूं ही साथ ही जिन्होंने कमियां बताई उनका और अधिक आभारी इसलिए भी कि कम से कम मुझे यह तो एहसास करवाया कि विद्वानों के बीच जब रचना पहुंचती है तो उस पर मंथन जरूर होता है। यही मैं नवोदित गीतकारों से भी कहना चाहूंगा कि वे भी अपनी रचना को केवल लिखकर आपसी लोगों में ही शेयर न करें बल्कि उसे उन लोगों तक भी पहुंचाएं जिनको वे जानते नहीं हैं और उनकी टिप्पणी अथवा सलाह पर अमल करें।
श्री उत्तम द्विवेदी तथा अन्य विद्वानों ने ‘चांद-सितारों’ का प्रयोग पर काफी कुछ कहा है। उनसे मैं यह कहना चाहूंगा कि चांद-सितारों का प्रयोग भले ही पारंपरिक हैं लेकिन नवगीत में जिस प्रतिमान में प्रयोग किया गया है वह परंपरिक न होकर शहर की वैभवता ओर बिलासिता को प्रतीक माना गया है। इसे और अच्छे से यूं भी समझा जा सकता है कि आज हम शहर में रहकर गांवों के परंपरिक संसकारों को भुला बैठे हैं क्योंकि शहर की चकाचौंध में हम अपने कल को भूलते जा रहे हैं।
आदणीय डॉ. जगदीश व्योम जी से निवेदन है कि वे जैसा चाहें उचित परिवर्तन कर सकते हैं। क्योंकि यदि मेरा गीत पूर्ण होता तो शायद मैं नवगीत की पाठशाला में इसे शामिल क्यों करता बल्कि इसे तो नवगीत के विवि में पाठय पुस्तक में शामिल होना चाहए था। आपका आशीर्वाद हमेशा मैं चाहूंगा और आपका मार्गदर्शन भी।
धन्यवाद।
महेश सोनी
सुंदर नवगीत के लिए बधाई महेश सोनीजी
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