19 अगस्त 2011

९. महानगरी राजधानी

महानगरी
राजधानी धूप की
बुन रही गहरे अँधेरे

घूमता है घनी सडकों पर
एक बहरा शोर
साँझ तक फैली गुफाओं का
है न कोई छोर

सोच में डूबी
निकलती हैं
यातनाएँ हर सबेरे

बहुत उजले और ऊँचे हैं
रोशनी के पुल
किन्तु उनकी छाँव में पलते
सिर्फ़ अंधे कुल

लोग कंधों पर
उठाये घूमते
उजड़े बसेरे

भीड़ है-
बाज़ार में उत्सव और मेले हैं
छली चेहरों की नुमायश है
घर अकेले हैं

एक छल है
आइनों का
सभी को परछाईं घेरे

कुमार रवीन्द्र

8 टिप्‍पणियां:

  1. महानगरी
    राजधानी धूप की
    बुन रही गहरे अँधेरे

    अद्भुत मुखड़ा है। काफी समय तक याद रहेगा। बहुत बहुत बधाई कुमार रवींद्र जी को इतना सुंदर नवगीत लिखने के लिए।

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  2. उत्तम द्विवेदी19 अगस्त 2011 को 9:14 pm बजे

    सुंदर नवगीत के लिए कुमार रवींद्र जी को बहुत बहुत बधाई!

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  3. कुमार रवीन्द्र जी के नवगीत पढ़ने की एक ललक सी रहती है कि कब उनका कोई ताज़ा नवगीत पढ़ने को मिले। बहुत सुन्दर नवगीत है महानगर पर विशेष रूप से ये पंक्तियाँ तो मन के किसी गह्वर में उतर जाती हैं-
    लोग कंधों पर
    उठाये घूमते
    उजड़े बसेरे

    बहुत सारे लोगों के मन में दबी हुई अनुभूतियों को ही मानो इन पंक्तियों ने अभिव्यक्ति किया है। बहुत बहुत वधाई कुमार रवीन्द्र जी को।

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  4. घूमता है घनी सडकों पर
    एक बहरा शोर
    साँझ तक फैली गुफाओं का
    है न कोई छोर

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं
    सुंदर नवगीत के लियें आपको बधाई...
    जहाँ तहाँ आपक़े नवगीत ढूंढती रहती हूँ....
    आपको पढ़ना हमेशा अच्छा लगा है ....कुमार रविन्द्र सर...आभार .....

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  5. एक छल है
    आइनों का
    सभी को परछाईं घेरे

    bahut khoob.

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  6. बहुत बधाई। नवगीत में बहुत सी जगह ऐसी हैं जहाँ रुक -रुक कर फिर-फिर पढ़ने को मन किया। बहुत गंभीर नवगीत।
    यह सोच कर बहुत अच्छा लगता है कि एक ही विषय पर कितनी विविधताएँ हैं सोचने की और लिखने की, कितने ही अलग अलग पहलू, कितने ही आयाम हैं। यही नवीनता नवगीत की पाठशाला की ख़ासियत है। सभी को साधुवाद।

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  7. ९. महानगरी राजधानी
    महानगरी
    राजधानी धूप की
    बुन रही गहरे अँधेरे

    घूमता है घनी सडकों पर
    एक बहरा शोर
    साँझ तक फैली गुफाओं का
    है न कोई छोर Ati sundar Prabhudayal

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  8. भीड़ है-
    बाज़ार में उत्सव और मेले हैं
    छली चेहरों की नुमायश है
    घर अकेले हैं

    एक छल है
    आइनों का
    सभी को परछाईं घेरे

    कुमार रवीन्द्रजी बधाई आपको

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