बहुत घुटन है
बंद घरो में, खुली हवा तो आने दो
संशय की खिड़कियाँ
खोल दो, किरनों को मुस्काने दो
ऊंचे- ऊँचे भवन उठ रहे
पर आंगन का नाम नहीं,
चमक - दमक आपा- धापी है
पर जीवन का नाम नहीं
लौट न जाये
सूर्य द्वार से,
नया सबेरा लाने दो
हर माँ अपना राम जोहती
कटता क्यों बनवास नहीं
मेहनत की सीता भी भूखी
कटता क्यों उपवास नहीं
बाबा की सूनी
आँखों में,
चुभता तिमिर भगाने दो
हर उदास राखी गुहारती
भाई का वह प्यार कहाँ
डरे- डरे अब रिश्ते कहते
खुशियों का त्योहार कहाँ
गुमसुम गलियों में
ममता की
खुशबू तो बिखराने दो
डा० राधेश्याम बंधु
दिल्ली
साधुवाद भाई राधेश्याम बन्धु को इस श्रेष्ठ नवगीत के लिए| कुछ पंक्तियाँ निश्चित ही स्मरणीय हैं, यथा -
जवाब देंहटाएंहर माँ अपना राम जोहती
कटता क्यों बनवास नहीं
मेहनत की सीता भी भूखी
कटता क्यों उपवास नहीं
... ... ...
गुमसुम गलियों में
ममता की
खुशबू तो बिखराने दो
बहुत सुंदर नवगीत है ये राधेश्याम जी का। हार्दिक बधाई उन्हें इस नवगीत के लिए।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई श्रेष्ठ नवगीत के लिए
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ नवगीत के लिए
waah... waah...
डा० राधेश्याम बंधु सक्रिय नवगीतकार हैं परन्तु नवगीत की पाठशाला पर उनका यह पहला नवगीत है, स्वागत है बंधु जी का। बहुत सुन्दर नवगीत है बंधु जी का ....... बहुत बहुत वधाई डा० बंधु जी को।
जवाब देंहटाएंगुमसुम गलियों में
जवाब देंहटाएंममता की
खुशबू तो बिखराने दो
वाह...वाह...
बहुत सुंदर नवगीत...बधाई आपको...
बहुत सुन्दर नवगीत लगा। इस नवगीत में आपने बहुत ही खूबसूरत तरीके से आज के संदर्भ की तुलना की है, उदाहरण भी अच्छे दिए है। बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंएक अच्छे नवगीत के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत घुटन है
बंद घरो में, खुली हवा तो आने दो
संशय की खिड़कियाँ
खोल दो, किरनों को मुस्काने दो
--- सुन्दर मुखड़ा
ऊंचे- ऊँचे भवन उठ रहे
जवाब देंहटाएंपर आंगन का नाम नहीं,
चमक - दमक आपा- धापी है
पर जीवन का नाम नहीं
लौट न जाये
सूर्य द्वार से,
नया सबेरा लाने दो Bahut acchii pantiyaan Nice
Prabhudayal
हर माँ अपना राम जोहती
जवाब देंहटाएंकटता क्यों बनवास नहीं
मेहनत की सीता भी भूखी
कटता क्यों उपवास नहीं
बाबा की सूनी
आँखों में,
चुभता तिमिर भगाने दो
डा० राधेश्याम बंधुजी को इस प्रेरणापूर्ण नवगीत के लिए आभार