17 सितंबर 2011

कार्यशाला- १८ उत्सव का मौसम


शहर का एकांत शीर्षक से इकतीस रचनाओं की शुभ संख्या के साथ नवगीत की पाठशाला की १७वीं कार्यशाला पूरी हुई। शहर के एकांत से आगे बढ़कर महानगरों की त्रासदी और गाँव की स्मृतियों तक इन रचनाओं का विस्तार रहा। रिश्तों के दुराव, प्रतियोगिता के दबाव और मानसिक तनाव जैसी अनेक संवेदनाओं के उतराव चढ़ाव इन रचनाओं में देखने को मिले। कार्यशाला की विस्तृत टिप्पणी डॉ. व्योम लिख रहे हैं और जल्दी ही उसे प्रकाशित करेंगे।

लंबे ग्रीष्म के बाद जैसे वर्षा की फुहार के साथ भारत में उत्सवों का रंग घुलने लगता है वैसे ही हम उकताहट और बेचैनी से भरे इस विषय के बाद कुछ मन-रंजन की बात करें। दशहरा, दीवाली द्वार पर खड़े है, हवा को नए मौसम गंध छूने लगी है, गंध जो सारे दर्द मिटाकर तन-मन में उमंग और उत्साह भरती है। तो इस त्योहार की ऋतु को कार्यशाला १८ में लाएँ- शीर्षक उत्सव का मौसम से। उत्सव केवल दशहरा दीवाली का नहीं होता। उत्सव वह सब कुछ होता है जो हमें चुनौतियों से जूझने के बाद विश्राम के पल देता है, तनाव की मार के बाद जश्न का मरहम देता है और एकरस जीवन को तोड़कर उमंग देता है। शीर्षक को इस व्यापक अर्थ में ही लिया जाना चाहिये। कभी हम उत्सव के मौसम मैं डूबते हैं तो कभी अपने दुख दर्द से छूटते हैं कभी उत्सव की याद करते हैं तो कभी उत्सव की तैयारी... आशा है ये बहुत से रंग इस कार्यशाला में देखने को मिलेंगे। दिये गए शब्द रचना में हों यह आवश्यक नहीं है।

आदरणीय कुमार रवीन्द्र का जैसा स्नेह इस पाठशाला को मिल रहा है वह सदस्यों के लिये बड़े ही सौभाग्य की बात है। उनकी टिप्पणियों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। डॉ व्योम की टिप्पणियाँ भी सीखने वालों को प्रेरित करती रही हैं दोनो सहयोगियों का हार्दिक आभार। आशा है कुछ और विद्वान नवगीतकार नियमित रूप से इस कार्यशाला में टिप्पणियाँ लिखकर इसको उपयोगी बनाएँगे।

कार्यशाला १८ की रचनाएँ हमें 1 अक्तूबर तक मिल जानी चाहिये। लेकिन सभी रचनाओं का प्रकाशन इससे पहले ही प्रारंभ हो जाएगा। रचना भेजने का पता है-  navgeetkipathshala@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. पूर्णिमा जी,

    बडा उत्सवी विषय है, लगता है विभिन्न रंगों की फुहार होगी |

    सादर
    शशि पाधा

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