डूबा था इकतारा
मन में
जाने कब से
चाह रहा था
खुलना-खिलना
अपने रब से
दी झनकार सुनाई
खुलीं खिड़कियाँ
दरवाज़े
जागे परकोटे
चिड़ियाँ छोटीं
तोते मोटे
मिलकर लोटे
नया सवेरा लाई
महकीं गलियाँ
चहकीं सड़कें
गाजे-बाजे
लोग घरों से
आए बाहर
बनकर राजे
गूँजी फिर शहनाई
--अवनीश सिंह चौहान
(मुरादाबाद)
sundar rachna
जवाब देंहटाएंबढ़िया नवगीत...
जवाब देंहटाएंसादर...
खुलीं खिड़कियाँ
जवाब देंहटाएंदरवाज़े
जागे परकोटे
चिड़ियाँ छोटीं
तोते मोटे
मिलकर लोटे
वाह क्या धूप खिली है ।
नवीन छंद से सुसज्जित इस नवगीत के लिए अवनीश जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमहकीं गलियां
जवाब देंहटाएंचहकी सड़कें
गाजे बाजे
इया सुंदर गीत के लिए अवनीश जी ...आपको बधाई
डूबा था इकतारा
जवाब देंहटाएंमन में
जाने कब से
चाह रहा था
खुलना-खिलना
अपने रब से
दी झनकार सुनाई
दर्शन से संसार की और उन्मुख हटी यह गीति रचना मन को भी. बधाई.