गीत हैं
बिखरे चारों ओर
मन पतंग को लगे उड़ाने,
उत्सव लेकर डोर,
समाचार
हैं बिछे लान में,
शतरंजी बाज़ी बागान में,
प्याले चाय, कहकहे काफी,
सहेलियों के
झुरमुट झाँकी,
मंद-मंद है पवन सुहानी,
रस भीगी है भोर,
झाँक रहा
कोहरे का दर्पण,
शीतलता से सिहरा आँगन,
त्योहारों के मौसम आए,
खील खिलौने
सबको भाए,
दीप देहरी सजे हुए हैं,
नाच रहे मनमोर
-कल्पना रामानी
(नवी मुंबई)
बिखरे चारों ओर
मन पतंग को लगे उड़ाने,
उत्सव लेकर डोर,
समाचार
हैं बिछे लान में,
शतरंजी बाज़ी बागान में,
प्याले चाय, कहकहे काफी,
सहेलियों के
झुरमुट झाँकी,
मंद-मंद है पवन सुहानी,
रस भीगी है भोर,
झाँक रहा
कोहरे का दर्पण,
शीतलता से सिहरा आँगन,
त्योहारों के मौसम आए,
खील खिलौने
सबको भाए,
दीप देहरी सजे हुए हैं,
नाच रहे मनमोर
-कल्पना रामानी
(नवी मुंबई)
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकल्पना जी आपको इस सुन्दर गीत के लिये बहुत-बहुत बधाई,समाचार
जवाब देंहटाएंहै बिछे लॉन में और सहेलियों के झुरमुट,जैसे शब्द अपने आप में एक सुन्दर रचना प्रतीत हो रही है तो पूरा गीत तो बहुत ही खूबसूरत है |
बहुत सुंदर नवगीत है कल्पना जी, बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंखील-खिलौने, झुरमुट झाँकी, जैसे शब्द प्रयोगों ने नवगीत को जीवन्तता दी है. सामयिक परिवेश का सटीक चित्रण... बधाई.
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