4 दिसंबर 2011

४. है यही विनती प्रभो

है यही विनती प्रभो
नव वर्ष ऐसा हो
एक डॉलर के बराबर
एक पैसा हो

ऊसरों में धान हो पैदा
रूपया दे पाव भर मैदा
हर नदी को तू रवानी दे
हर कुँआ तालाब पानी दे
लौट आए गाँव शहरों से
हों न शहरी लोग बहरों से
खूब पशुओं हेतु चोकर
और भूसा हो

कैद हो आतंक का दानव
फिर सभी दानव, बनें मानव
ताप धरती का जरा कम हो
रेत की छाती जरा नम हो
घाव सब ओजोन के भर दो
तेल पर ना युद्ध कोई हो
साल ये भगवन! धरा पर
स्वर्ग जैसा हो


सूर्य पर विस्फोट हों धीरे
भूध्रुवों पर चोट हो धीरे
अब कहीं भूकंप ना आएँ
संलयन हम मंद कर पाएँ
अब न श्यामल द्रव्य उलझाएँ
सब समस्याएँ सुलझ जाएँ

चाहता जो भी हृदय ये
ठीक वैसा हो

-- धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बरमाना, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश से

12 टिप्‍पणियां:

  1. एक डॉलर के बराबर
    एक पैसा हो

    ऊसरों में धान हो पैदा
    रूपया दे पाव भर मैदा

    कैद हो आतंक का दानव
    फिर सभी दानव, बनें मानव

    कितनी पंक्तियों को पेस्ट करूँ सभी बहुत समयोचित है और हरेक भारतीय या मानव के हृदय की चाहत है...

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  2. धर्मेन्द्र कुमार सज्जन जी ! बहुत सुन्दर नवगीत के लिए वधाई। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से सफल नवगीत है। बात कहने का नया ढँग और लयात्मकता का निर्वाह पूरे नवगीत में हुआ है।

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  3. आदरणीय जगदीश व्योम जी का आशीर्वाद मिला, नवगीत लिखना सफल हो गया। हार्दिक आभार स्वीकार करें।

    वंदना जी और कुमार नीरज जी नवगीत पसंद करने के लिए आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया।

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  4. आज की तमाम चिंताओं से जोड़ते इस प्रार्थना-गीत के लिए धर्मेन्द्र भाई को मेरा हार्दिक अभिनन्दन| ये पंक्तियाँ विशेष रुचीं -

    ऊसरों में धान हो पैदा
    रूपया दे पाव भर मैदा
    हर नदी को तू रवानी दे
    हर कुँआ तालाब पानी दे
    लौट आए गाँव शहरों से
    हों न शहरी लोग बहरों से
    खूब पशुओं हेतु चोकर
    और भूसा हो

    जवाब देंहटाएं
  5. गीत पर अपना आशीर्वाद देने के लिए कुमार रवींद्र जी का कोटिशः साधुवाद

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  6. तथास्तु. धर्मेन्द्र जी, बहुत खूब कहा है. ईश्वरेच्छा से आप कथन पूर्ण हो. आपको नव वर्ष शुभ हो.

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  7. यही विनती प्रभो
    नव वर्ष ऐसा हो
    एक डॉलर के बराबर
    एक पैसा हो आज के यथार्थ का हू बहू चित्रण बधाई धरमेन्द्र जी को प्रभुदयाल‌

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  8. ऊसरों में धान हो पैदा
    रूपया दे पाव भर मैदा
    हर नदी को तू रवानी दे
    हर कुँआ तालाब पानी दे
    लौट आए गाँव शहरों से
    हों न शहरी लोग बहरों से
    खूब पशुओं हेतु चोकर
    और भूसा हो
    पंक्तियाँ सुंदर भाव लिए ,खूब कहा
    अभिनन्दन
    rachana
    सादर
    रचना

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  9. प्रभुदयाल जी और रचना हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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