एक का आना एक का जाना
कुदरत का ये नियम पुराना
भूत-अभूत की छोड़ के चिन्ता
वर्तमान अब करें सुहाना,
सूरज सोये सूरज जागे
संग-संग इसके सारे भागे
कई रंगों में ढलता जीवन
कहीं सोग तो कहीं उमंगे,
गुज़रा बचपन गुज़री बातें
याद तो करना दिल न दुखाना
फिसल हाथ से जो पल जाये
मुड़ कर हाथ कभी ना आये
दर्द की परतें खुल हैं जाती
याद कोई जब बिछड़ा आये,
आँसू अपने पोंछ लो भाई
समय ना सुनता कोई बहाना
कल को अपना मान के रखना
खरा ये सोना जान के रखना
बीते कल ने आज बुना है,
आज बुनेगा कल का सपना,
कथा आज की बीत चली है
कल फिर होगा नया फ़साना
निर्मल सिद्धू
सुंदर रचना के सिद्धू जी को बधाई
जवाब देंहटाएंjeevan ki nashwarta aur samay ki taakat ko darshaati sundar prastuti ..
जवाब देंहटाएंmere blog par aapka swagat hai.