14 दिसंबर 2011

१४. पुराने पल

पुराने पल
शाखों से झड़ते रहे
कल, आज और कल

एक मैली सी
गठरी में
कुछ सहेज के रखा था
कुछ पल थे
यादों के
गम कोई जो खटका था
पीड़ा के शूल
दिलों में गड़ते रहे
कल ,आज और कल

बीते लम्हे
खोले तो
झरना सा बह उठा
भीगा
आज तुम्हारा
हौले से कह उठा
नाहक तुम
अतीत से लड़ते रहे
कल आज और कल

पुराने पल
शाखों से झड़ते रहे
कल आज और कल

-रचना श्रीवास्तव
यू.एस.ए. से

10 टिप्‍पणियां:

  1. रचना जी के इस सुंदर गीत के लिए मेरा हार्दिक साधुवाद! नवगीत की दस्तकें इसमें साफ़ सुनाई दे रही हैं|कुछ पंक्तियों में सहज प्रवाह कम है|लय-छंद पर थोडा और ध्यान देना ज़रूरी है|

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  2. रचना जी के इस सुंदर गीत केलिए मेरा हार्दिक साधुवाद! नवगीत की दस्तकें इसमें साफ़ सुनाई दे रही हैं| कुछ पंक्तियों में सहज प्रवाह कम है|लय-छंद पर थोडा और ध्यान देना ज़रूरी है|

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  3. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  4. रचना श्रीवास्तव काचिन्तन और अनुभव नूतनता से ओतप्रोत होता है । उसी तरह जी भाषा का संयोजन इनकी एक अन्य विशेषता है , जो इस नवगीत में बखूबी सम्पृक्त है । ये पंक्तियाँ तो बहुत भावपूर्ण हैं-बीते लम्हे
    खोले तो
    झरना सा बह उठा
    भीगा
    आज तुम्हारा
    हौले से कह उठा
    नाहक तुम
    अतीत से लड़ते रहे
    कल आज और कल

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  5. ''रचना श्रीवास्तव का चिन्तन और अनुभव नूतनता से ओतप्रोत होता है । उसी तरह जी भाषा का संयोजन इनकी एक अन्य विशेषता है , जो इस नवगीत में बखूबी सम्पृक्त है । ये पंक्तियाँ तो बहुत भावपूर्ण हैं-

    बीते लम्हे
    खोले तो
    झरना सा बह उठा
    भीगा
    आज तुम्हारा
    हौले से कह उठा
    नाहक तुम
    अतीत से लड़ते रहे
    कल आज और कल

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  6. बेहद भावपूर्ण रचना है..सुन्दर.अर्थपूर्ण.

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  7. सुन्दर व भावपूर्ण गीत के लिए बधाई स्वीकारें...।

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