अब शरद की जुन्हाई न परखो सखे
अब प्रकृति की लुनाई न ढूँढो सखे
ये शिशिर की ठिठुरती हुयी साँझ है-
पात पीले पड़े
डार सूनी हुईं
ये सिहरन, ये टप-टप, धुधलका, कुहासा
नियति रच रही नित्य नूतन तमाशा
सूर्य की अरुणिमा में ये क्या घुल गया-
दिन सुनहरे हुये
रात भी सुरमयी
है आहट ये माधमास-आगम सखे
औ' नये वर्ष का शुभ समागम सखे
फिर गमकने लगेंगे धरा और गगन-
पात फिर आयेंगे
डार होगी हरी
बाग वन वाटिका खेत बारी मगन
फिर मलय-गंध-युत होगा सन-सन पवन
गूँज कोयल की कुहकन की फैलेगी जब-
आम बौराएँगे
फाग होंगे कहीं
झाँकते ज्यों चुनर से हों 'गेसू' सखे
वस्त्र काशाय ओढेंगे टेसू सखे
-अनिल वर्मा
लखनऊ से
अब प्रकृति की लुनाई न ढूँढो सखे
ये शिशिर की ठिठुरती हुयी साँझ है-
पात पीले पड़े
डार सूनी हुईं
ये सिहरन, ये टप-टप, धुधलका, कुहासा
नियति रच रही नित्य नूतन तमाशा
सूर्य की अरुणिमा में ये क्या घुल गया-
दिन सुनहरे हुये
रात भी सुरमयी
है आहट ये माधमास-आगम सखे
औ' नये वर्ष का शुभ समागम सखे
फिर गमकने लगेंगे धरा और गगन-
पात फिर आयेंगे
डार होगी हरी
बाग वन वाटिका खेत बारी मगन
फिर मलय-गंध-युत होगा सन-सन पवन
गूँज कोयल की कुहकन की फैलेगी जब-
आम बौराएँगे
फाग होंगे कहीं
झाँकते ज्यों चुनर से हों 'गेसू' सखे
वस्त्र काशाय ओढेंगे टेसू सखे
-अनिल वर्मा
लखनऊ से
झाँकते ज्यों चुनर से हों 'गेसू' सखे
जवाब देंहटाएंवस्त्र काशाय ओढेंगे टेसू सखे
वाह... कितना सुंदर...
क्या मैं इतनी स्तरीय कविता कभी भी लिख सकूँगा?!?
बहुत सुंदर नवगीत है, अनिल वर्मा जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंFir gamakne lagenge dhara or gagan.....bahut sundar abhivykti hai
जवाब देंहटाएं"वस्त्र काषाय ओढेगेटेसू सखे "
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारीपंक्ति |अच्छी लगी यह रचना |
आशा
उन्नत भाषा शैली समेटे विचार ..
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत...
जवाब देंहटाएंबधाई
Bahut Acchi rachana
जवाब देंहटाएंPrabhudayal
ये शिशिर की ठिठुरती हुयी साँझ है-
जवाब देंहटाएंपात पीले पड़े
डार सूनी हुईं
ये सिहरन, ये टप-टप, धुधलका, कुहासा
नियति रच रही नित्य नूतन तमाशा
सूर्य की अरुणिमा में ये क्या घुल गया-
दिन सुनहरे हुये
रात भी सुरमयी
है आहट ये माधमास-आगम सखे
औ' नये वर्ष का शुभ समागम सखे
-- बहुत ही खुबसूरत, मन को गुनगुनाने वाले नवगीत के लिए वर्मा जी को बहुत-बहुत बधाई!