फिर फिर
बदल दिये कैलेण्डर
तिथियों के संग संग प्राणों में
लगा रेंगने
अजगर सा डर
सिमट रही साँसों की गिनती
सुइयों का क्रम जीत रहा है!
पढ़कर
कामायनी बहुत दिन
मन वैराग्य शतक तक आया
उतने पंख थके जितनी भी
दूर दूर नभ
में उड़ आया
अब ये जाने राम कि कैसा
अच्छा बुरा अतीत रहा है!
संस्मरण
हो गई जिन्दगी
कथा कहानी सी घटनाएँ
कुछ मनबीती कहनी हो तो
अब किसको
आवाज लगाएँ
कहने सुनने सहने दहने
को केवल बस गीत रहा है!
भारत भूषण
(वरिष्ठ गीतकार को भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ)
भारत भूषण जी ने कल अर्थात् १७ दिसम्बर को इस असार संसार को अलविदा कह दिया। परन्तु गीतों में तो वे ऐसे रचे बसे हैं कि जब तक इस संसार में गीत रहेगा भारत भूषण भी रहेंगे। उन्होंने प्रेम के वियोग पक्ष को अपने गीतों में स्थान दिया है। हिन्दी गीत को अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में भारत भूषण जी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उनके गीत बहुत गहरे डूब कर लिखे गए गीत हैं एक-एक शब्द तराश कर रखा गया है। वे निराला जी और देवराज दिनेश जी से बहुत प्रभावित रहे हैं। उनके गीतों की अनुगूँज सदियों तक रहेगी। नवगीत की पाठशाला में उनके इस नवगीत से दी जा रही श्रद्धाजंलि में सहभागी बनकर उनकी स्मृति शेष को नमन कर रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंभारत भूषण जी की स्मृति को नमन!
जवाब देंहटाएंसमृति शेष रह गई उनकी
जवाब देंहटाएंकथा कहानी नवगीतों में
कुछ मनबीती कहनी हो तो
ढूँढेंगे उनको गीतों में
श्रद्धा सुमन तुम्हें अर्पण कर
नमन कर रहा'आकुल'कविवर
अश्रुपूर्ण नमन मेरा ...
जवाब देंहटाएंएक नवगीत और उन्हीं की कलम से..
सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूँ
प्रिय मिलने का वचन भरो तो !
पलकों-पलकों शूल बुहारूँ
अँसुअन सींचू सौरभ गलियाँ
भँवरों पर पहरा बिठला दूँ
कहीं न जूठी कर दें कलियाँ
फूट पडे पतझर से लाली
तुम अरुणारे चरन धरो तो !
रात न मेरी दूध नहाई
प्रात न मेरा फूलों वाला
तार-तार हो गया निमोही
काया का रंगीन दुशाला
जीवन सिंदूरी हो जाए
तुम चितवन की किरन करो तो !
सूरज को अधरों पर धर लूँ
काजल कर आँजूँ अँधियारी
युग-युग के पल छिन गिन-गिनकर
बाट निहारूँ प्राण तुम्हारी
साँसों की जंज़ीरें तोड़ूँ
तुम प्राणों की अगन हरो तो ||
..भारत भूषण
(स्मृतिशेष भाई भारतभूषण को)
जवाब देंहटाएंभाई, यह क्या
छोड़ गये तुम
गीतों को चुपचाप अकेला
तुमने टेरा
गीत हुआ था सगुनापाखी
सूर-कबीरा-मीरा की
तुमने पत राखी
तुम थे
तब था लगता
जैसे हर दिन हो गीतों का मेला
तुम बिन सूना
गीतों का हो गया शिवाला
तुमने ही था
उसे नये साँचे में ढाला
नेह-देवता
सोच रहे अब
कौन करेगा ऋतु का खेला
तुमने सिखलाया था
कैसे गान उचारें
पतझर-हुए गीत को भी
किस भाँति सँवारें
थाती है
जो छोड़ गये तुम
गीतों का मौसम अलबेला
भारत भूषण जी को श्रद्धाजंलि
जवाब देंहटाएंनमन
rachana
आदरणीय कुमार रवीन्द्र जी ने जिस प्रकार गीतकार भारत भूषण जी को गीत में श्रद्धांजलि दी है उसने मन को छू लिया। जिस रचनाकार के प्रति ऐसे शब्द लिखे जाएँ वह तो बेमिसाल होगा ही लेकिन जो गीतकार ऐसे शब्द जोड़ सके उसका भी जवाब नहीं। साहित्य साधना के किसी समाधि पल में ही ऐसे दिव्य शब्द रचे जा सकते हैं। आप दोनो को ही सादर नमन।
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा वर्मन