आन खड़ी द्वारे पर मेरे
नए बरस की सोन घड़ी
बीते कल को गले लगाया
सुबह सवेरे विदा किया
प्रेम नेह से भरी पोटली
डलिया में आभार दिया
जाने कितनी दूर डगर है
अखियाँ – बाणी भरी –भरी
नियम जगत का रीत यही
पुरखों ने यही बात कही
समय बटोही रुका न रोके
पलछिन धारा नित्य बही
आगत के स्वागत में नभ से
स्वर्ण किरण की लगी झड़ी
पाहुन को बाहों में भर कर
आदर और सत्कार किया
रोली-चन्दन भाल सजाकर
गुड मिश्री का थाल दिया
विश्वासों की मौली बाँधी
आशाओं की पुष्पलड़ी
देहरी लाँघ के आई घर में
नए बरस की पुण्य घड़ी
शशि पाधा
यू.एस.ए से
इस खूबसूरत नवगीत के लिए शशिपाधा जी को बधाई
जवाब देंहटाएंशशि पाधा जी, बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंपाहुने के स्वागत में आप खड़ीं !
Sharda Monga.
नियम जगत का रीत यही
जवाब देंहटाएंपुरखों ने यही बात कही
समय बटोही रुका न रोके
पलछिन धारा नित्य बही
बहुत सुन्दर अच्छे नवगीत के लिए शशि जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
शशिपाधा जी
जवाब देंहटाएंरोली-चन्दन भाल सजाकर
गुड मिश्री का थाल दिया
बहुत खूब.
rachana
acchii rachana
जवाब देंहटाएंशशि पाधा जी का कई परिचित पारिवारिक सन्दर्भों से रू-ब-रू करता यह गीत -कहन एकदम ठेठ लोकगीत शैली की| मेरा हार्दिक अभिनन्दन!
जवाब देंहटाएंप्रेम-पगा नवगीत
जवाब देंहटाएंमन को बहुत भाया दी ...
बधाई ..
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, शारदा जी, विमल जी ,रचना जी, प्रभुदयाल जी, गीता जी एवं कुमार रविन्द्र जी , आप सब ने मेरे नवगीत को पढ़ा एवं सराहा , आप सब का हार्दिक धन्यवाद तथा नवगीत की पाठशाला का आभार |
जवाब देंहटाएंशशि पाधा