उषा की अरुणिमा में
ऊँचाई माप रहे
संध्या की लाली में
गहराई झाँक रहे
जीवन भर सूरज सा
जलते ही जाना है
धरती के दोहन में
धीरता को ढूढिये
अम्बर के दूषण में
शीलता को खोजिये
नदियों के कल-कल से
गति का अनुमान करे
पर्वत के शिखरों से
उन्नति का ध्यान धरे
अनुभव की शाला में
पढ़ते ही जाना है
जग के उपहासों से
मन में मत व्रीड़ा हो
अधरों पर हास लिये
अन्तस की पीड़ा हो
नित नूतन भावों का
अभिनव शृंगार करे
जीवन की प्यासों में
आशा का नीर भरे
साँसों की वीणा को
कसते ही जाना है
--अनिल वर्मा
लखनऊ से
जीवन भर सूरज सा
जवाब देंहटाएंजलते ही जाना है...
अनुभव की शाला में
पढ़ते ही जाना है...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई अनिल वर्मा जी.
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत है। अनिल जी बधाई।
जवाब देंहटाएंअनिल जी को इस सुंदर नवगीत के लिए बधाई
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