बचपन में पौधा रोपा था,
भीगे भीगे सावन में।
बरसों बाद खड़ी हूँ फिर से,
यादों के उस आँगन में।
पारिजात का पौधा है यह,
माँ ने यही बताया था,
मुरझाएगा,बार बार मत,
छुओ,यही समझाया था।
सुनी अनसुनी कर देती थी,
सहलाती थी क्षण-क्षण में।
नन्हा पौधा बड़ा हो गया,
कलियों से गुलजार हुआ।
सारा आलम लगा महकने,
हर दिन हरसिंगार हुआ।
तना हिलाती ढेरों पाती।
भर लेती थी दामन में।
स्वर्ग लोकसे भू पर भेजा,
इसे कौन से दाता ने,
श्वेत पंखुरी, केसर डांडी,
कैसे रचाविधाता ने।
रात को सोता कली रूप में,
सुबह जागता यौवन में।
अब न रहा वो गाँव न आँगन,
छूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
खुशगवारयादों का साथी,
बसा लिया मन उपवन में।
भीगे भीगे सावन में।
बरसों बाद खड़ी हूँ फिर से,
यादों के उस आँगन में।
पारिजात का पौधा है यह,
माँ ने यही बताया था,
मुरझाएगा,बार बार मत,
छुओ,यही समझाया था।
सुनी अनसुनी कर देती थी,
सहलाती थी क्षण-क्षण में।
नन्हा पौधा बड़ा हो गया,
कलियों से गुलजार हुआ।
सारा आलम लगा महकने,
हर दिन हरसिंगार हुआ।
तना हिलाती ढेरों पाती।
भर लेती थी दामन में।
स्वर्ग लोकसे भू पर भेजा,
इसे कौन से दाता ने,
श्वेत पंखुरी, केसर डांडी,
कैसे रचाविधाता ने।
रात को सोता कली रूप में,
सुबह जागता यौवन में।
अब न रहा वो गाँव न आँगन,
छूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
खुशगवारयादों का साथी,
बसा लिया मन उपवन में।
-कल्पना रामानी
मुंबई
आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।।
bahut sundar
जवाब देंहटाएंगीत अति सुंदर है. क्यों न कोशिश करें.
जवाब देंहटाएंमन मंदिर में प्रेम प्यार के
हरसिंगार उगायेंगे,
तेरे मेरे अंगना में वे,
लहरेंगे मह्कायेंगे
वाह कल्पना दी बेहद सुंदर नवगीत ........जीवन का सार माँ की सीख , पुरे जीवन का सार प्यार , सीख दर्पण समाया है रचना में , नवगीत का बेहतरीन सौम्य गीत , यादों की खुशबू , और वर्तमान का मेल ..........
जवाब देंहटाएंपारिजात का पौधा है यह,
माँ ने यही बताया था,
मुरझाएगा,बार बार मत,
छुओ,यही समझाया था।
सुनी अनसुनी कर देती थी,
सहलाती थी क्षण-क्षण में।
नन्हा पौधा बड़ा हो गया,
कलियों से गुलजार हुआ।
सारा आलम लगा महकने,
हर दिन हरसिंगार हुआ।
तना हिलाती ढेरों पाती।
भर लेती थी दामन में। .........
अब न रहा वो गाँव न आँगन,
छूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
खुशगवारयादों का साथी,
बसा लिया मन उपवन में।........ गीत पढ़ते -पढ़ते चलचित्र नजरो के सम्मुख था ......ख़त्म होते अस्तिव का मार्मिक व्यंग . सच में वक़्त बहुत बदल गया है बस यादें ही जमा होती जा रही है , हार्दिक शुभेक्षा आपको कल्पना जी
-कल्पना रामानी
वाह कल्पना दी बेहद सुंदर नवगीत ........जीवन का सार माँ की सीख , पुरे जीवन का सार प्यार , सीख दर्पण समाया है रचना में , नवगीत का बेहतरीन सौम्य गीत , यादों की खुशबू , और वर्तमान का मेल ..........
जवाब देंहटाएंपारिजात का पौधा है यह,
माँ ने यही बताया था,
मुरझाएगा,बार बार मत,
छुओ,यही समझाया था।
सुनी अनसुनी कर देती थी,
सहलाती थी क्षण-क्षण में।
नन्हा पौधा बड़ा हो गया,
कलियों से गुलजार हुआ।
सारा आलम लगा महकने,
हर दिन हरसिंगार हुआ।
तना हिलाती ढेरों पाती।
भर लेती थी दामन में। .........
अब न रहा वो गाँव न आँगन,
छूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
खुशगवारयादों का साथी,
बसा लिया मन उपवन में।........ गीत पढ़ते -पढ़ते चलचित्र नजरो के सम्मुख था ......ख़त्म होते अस्तिव का मार्मिक व्यंग . सच में वक़्त बहुत बदल गया है बस यादें ही जमा होती जा रही है , हार्दिक शुभेक्षा आपको कल्पना जी
-कल्पना रामानी
अब न रहा वो गाँव न आँगन,
जवाब देंहटाएंछूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
खुशगवारयादों का साथी,
बसा लिया मन उपवन में।
एक दर्द भारी मिठास संजोये, उत्कृष्ट नवगीत के लिए बधाई कल्पना जी.
बढ़िया , सुन्दर भाव ....
जवाब देंहटाएंअब न रहा वो गाँव न आँगन ,
छूट गया फूलोँ से प्यार ।
छोटे फ्लैट चार दीवारेँ ,
कहाँ उगाऊं हरसिंगार ।
इस सुंदर गीत के लिए कल्पना जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअब न रहा वो गाँव न आँगन,
जवाब देंहटाएंछूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
बहुत सुन्दर......बचपन की यादों मे रंगा हुआ
सभी मित्रों का सुंदर टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार
हटाएंअब न रहा वो गाँव न आँगन,
जवाब देंहटाएंछूट गया फूलों से प्यार।
छोटे फ्लैट चार दीवारें,
कहाँ उगाऊँ हरसिंगार।
सही कहा आपने कहाँ उगा सकते हैं अब हरसिंगार
बहुत सुंदर लिखा है बधाई रचना
आ कल्पना जी, आपने इस गीत के माध्यम से आधुनिक जीवन की सच्चाई को चित्रित किया है. सुन्दर नवगीत के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंमाँ की सीख से सुंदर कल्पित नवगीत हरसिंगार की तरह चहुँ दिशाओं को महका रहा है .आपने तो बचपन के पृष्ठों को खोल दिया .
जवाब देंहटाएंरात को सोता कली रूप में,...... पंक्ती में हरसिंगार की कली तो रात में खिल जाती है .अगर इस पंक्ती को सही कर ले तो ....सही लगेगा .यह मेरा विन्रम अनुरोध है .
बधाई
मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुम्बई .
भारत .
मंजु जी मैंने गीत रचना कल्पना के आधार पर चित्र देखकर ही की है। आपके कहे अनुसार इसे "कली रूप में"की बजाय "शिशु रूप में" कहा जा सकता है।जानकारी देने के लिए और गीत पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद।
हटाएंस्वर्ग लोक के ५ वृक्ष कल्प वृक्ष, पारिजात, हर सिंगार, सन्तान वृक्ष, मंदार तथा हरिचंदन हैं.
जवाब देंहटाएंआपके अनुसार पारिजात बड़ा होकर हरसिंगार हो गया. क्या ये दोनों एक हैं? यदि हाँ तो स्वर्ग वृक्ष ४ ही रह जायेंगे.
गीत उत्तम है. बधाई.
आदरणीय संजीव जी,पारिजात, हरसिंगार एक ही पुष्प या पौधे के नाम हैं,गीत में लय के अनुसार दोनों का प्रयोग किया है। पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद आपका। और उसका स्वर्ग से आना काल्पनिक है। विज्ञान सम्मत है या नहीं,मैं नहीं जानती।
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