वृक्ष अपने पत्र तज कर
रूठ कर बैठे हों हट कर
लीन हों अपनी लगन में
जैसे सजनी
पी की धुन में
तुम कहो तो कौन आया?
सड़क पर रंगों का मेला
चुस्कियों
कुलफी का रेला
हैं बहारें शर्बतों की
कर दे शीतल
मन व काया
तुम कहो तो कौन आया?
रेत में गहरे छुपे हैं
कुछ रसीले
हरे पीले
लाल रक्तिम
हृदय गीले
तुम कहो तो कौन आया?
बेर ज़ामुन और ककड़ी
पेड़ की भाती हो छाया
आर्द्रता अपने हृदय की
ले उड़े जब शुष्क वायु
मैं बताऊॅ कौन आया
ग्रीष्म आया! ग्रीष्म आया!
— विजय ठाकुर
नई दिल्ली
रूठ कर बैठे हों हट कर
लीन हों अपनी लगन में
जैसे सजनी
पी की धुन में
तुम कहो तो कौन आया?
सड़क पर रंगों का मेला
चुस्कियों
कुलफी का रेला
हैं बहारें शर्बतों की
कर दे शीतल
मन व काया
तुम कहो तो कौन आया?
रेत में गहरे छुपे हैं
कुछ रसीले
हरे पीले
लाल रक्तिम
हृदय गीले
तुम कहो तो कौन आया?
बेर ज़ामुन और ककड़ी
पेड़ की भाती हो छाया
आर्द्रता अपने हृदय की
ले उड़े जब शुष्क वायु
मैं बताऊॅ कौन आया
ग्रीष्म आया! ग्रीष्म आया!
— विजय ठाकुर
नई दिल्ली
बहुत सुन्दर गीत...............
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें.
अनु
बहुत सुंदर नवगीत है, एक पहेली जैसा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है, विजय जी को बधाई
जवाब देंहटाएंवृक्ष अपने पत्र तज कर
जवाब देंहटाएंरूठ कर बैठे हों हट कर
लीन हों अपनी लगन में
जैसे सजनी
पी की धुन में
तुम कहो तो कौन आया?
अनूठी और असरदार शुरुआत... समूची रचना सरस और मोहक
वाह ! अपने पूरे साजो सामान के साथ ग्रीष्म आ गया | सुन्दर रचना | बधाई आपको विजय जी |
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंग्रीष्म ऋतु का सुन्दर चित्रण ...!
जवाब देंहटाएंबधाई ।