अब, साधो
ए.सी. कमरों में
रहते हैं गर्मी के दिन
बाहर आग बरसती
भीतर मौसम है ठंडा
दूर देश से लाया सूरज
राजा का पंडा
रखी गईं हैं
शाही फ्रिज में
उसकी कुछ किरणें कमसिन
कम्प्यूटर पर
झुलसे पेड़ों की तस्वीर दिखी
शाश्वत ने गर्मी पर कविता
उसको देख लिखी
उधर
करौंदे में छिप
मकड़ी जाल रही सपनों का बिन
नदी-घाट पर जाने की
अब किसे भला फुर्सत
चुल्लू पानी में नहायें
यह युग की, सुनो, जुगत
इन्फेक्शन के
डर से
सहमे रहते हैं अबके पल- छिन
-कुमार रवीन्द्र
हिसार
बहुत सुंदर नवगीत है। कुमार रवीन्द्र जी की सशक्त लेखनी से निकले एक और शानदार नवगीत के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट कल 21/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 917 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
एक नए अंदाज़ में लिखा हुआ अति सुंदर नवगीत। मुखड़ा तो बहुत ही शानदार है। पूरा गीत बेमिसाल।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर नवगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नवगीत ...।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं ।
bahut sundar geet hai bhai ab sahity bhi ac mai hi rahata hai
जवाब देंहटाएंअद्भुत गीत /नवगीत चचा जी |
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