26 जुलाई 2012

कार्यशाला-२२ समीक्षात्मक टिप्पणी

ग्रीष्मकालीन नवगीत कार्यशाला-२२ में इस बार के विषय, "दिन गर्मी के' में २० प्रविष्टियों ने स्थान पाया। इस बार कुछेक नए नवगीतकारों के आलावा नवगीत के ख्यातिप्राप्त हस्ताक्षरों ने भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है। नवगीत के पुरोधाओं में हिसार से कुमार रविन्द्र, सतना से अनूप अशेष और मुरादाबाद से महेश्वर तिवारी, के नवगीत अपनी शैली और नवगीत की सांगोपांग छटा समेटे प्रकृति की अनुपम सज-धज के साथ विद्यमान है।

अन्य समकालीन नवगीतकारों में शारजाह से पूर्णिमा वर्मन, संयुक्त राज्य अमेरिका से शशी पाधा, नवी मुंबई से कल्पना रामानी, नई दिल्ली से राजेश श्रीवास्तव, विजय ठाकुर, गीता पंडित, कानपुर से भावना वैदेही तिवारी, जयपुर से डा. सरस्वती माथुर, बिलासपुर से धर्मेन्द्र कुमार सज्जन, कोटा से आकुल, राजमणि राय 'मणि', सतना से अनूप अशेष, जबलपुर से संजीव सलिल, मण्डी हिमांचल प्रदेश से सुरेन्द्रपाल वैद्य, प्रतापगढ़ से रवि शंकर मिश्र 'रवि', लखनऊ से परमेश्वर फूँकवाल, संध्या सिंह, रामशंकर वर्मा, सभी नवगीतकारों के नवगीतों की अपनी एक विशिष्ट छाप है।

रवि शंकर मिश्र "रवि" ने "फुरसत में गाँव' में गरमी के गाँव समाज की फुरसत का अच्छा चित्रण किया है। "फसल गयी कोठिला में..., बचपन को मलदहिया से..., उफ़ तक न करे...बेचारी दुल्हन का सीधा स्वभाव है" देहात की गर्मी में चूल्हे की आंच में खटती दुल्हन का मर्मस्पर्शी है।

वरिष्ठ नवगीतकार कुमार रविन्द्र का 'अब, साधो ए.सी. कमरों में रहते हैं गर्मी के दिन' में नगरीय ग्रीष्म का अनुपम दृश्य खींचा है। गीत का मुखड़ा ही गीत मुख्य स्वर है। 'दूर देश से लाया सूरज राजा का पंडा, रखी गईं हैं शाही फ्रिज में उसकी कुछ किरणें कमसिन' इन्फेक्शन के डर से सहमे रहते हैं अबके पल- छिन' जैसे विम्बों से नवगीत सजा है।

भावना वैदेही तिवारी का 'आ गए सूर्य की ढिठाई के दिन' ---सतुआई के दिन, किताबें हँसी गाँव भागी, नानी की तरुणाई फटक रही सूप, दहके पलाश की जवानी के दिन, बूढ़े बरगद की अँगड़ाई के दिन' गर्मी के अलग से उपमान हैं।

'कब गरमी की रुत जाय' में कोटा शहर से 'आकुल' ने जन-जीवन में गर्मी की विकलता का लाय भर दी है।

'महुए से भरा हुआ गाँव' में राज मणि राय 'मणि' ने ग्रीष्म के बहाने 'मिहनत भर गीत है हर चेहरा सादा है' कह कर गाँव के मेहनतकश की सुधि ली है।

अनूठे विम्ब विधानों से सुगठित 'आओ हम धूप वृक्ष काटें' सिद्धहस्त गीतकार महेश्वर तिवारी का एक उत्कृष्ट नवगीत है। उमस और गर्मी की दाह का जनजीवन पर असर 'चुप है गाँव..., हर तरफ घिरी घिरी सी उदासी..., सर पर सूरज (जब परछाई छोटी हो जाये) हल्दी के रंग भरे कटोरे आदि विम्ब दर्शनीय हैं।

विजय ठाकुर का लय में बहता नवगीत 'तुम कहो तो कौन आया?' बड़ा ही प्रभावोत्पादक बन पड़ा है। अनावृत वृक्षों का तादात्म्य सजन की प्रतीक्षारत पत्नी से, रेत में ... कुछ रसीले हरे पीले लाल रक्तिम हृदय गीले' आदि गीत के मुख्य विश्रामस्थल हैं।

लोक रूपकों के धनी अनूप अशेष का नवगीत 'ईंट–पत्थरों ...' में कंक्रीट के जंगलों में चिड़ियों के रहवासों की चिंता झलकती है। आधुनिक सन्दर्भ में रिश्तों की अच्छी पड़ताल भी है इस नवगीत में।

'लो फिर आ गये...' में राजेश श्रीवास्तव का एक विशिष्ट और खास अंदाज है। डिक्टेटर गर्मी सिर्फ आदेश का पालन कराती है। 'फिर अंधाधुंध गोलियाँ कटार बन जाएंगे सीनों के पिन आवारा होगी धूल और मौसम बाज होगा' एक अनोखा अप्रस्तुत विधान। उम्रकैद में ...शीतल छाँह, उमस की बेटियाँ, संध्या का सांता क्लाज आदि का प्रयोग गीत को एक खूबसूरत रचना सिद्ध करता है।

डाक्टर सरस्वती माथुर का 'गर्मी आई गयी उमंग' नवगीत की कहन का सुन्दर उदाहरण है।

पूर्णिमा वर्मन का नवगीत 'रखे वैशाख ने पैर' में खिले गुलमुहर ...हरी चुनर पर छींट सिंदूरी, सिहर उठी..., अमलतास के सोन हिंडोले, धूप ओढ़नी आदि ऋतु परिवर्तन के सहज और सुन्दर विम्ब हैं।

सुरेन्द्रपाल वैद्य का नवगीत 'सबको शीतलता ...घने वृक्ष की छाँव' में 'ऊँघ रहा जनपद का एक गाँव, टुकुर टुकुर ममता ने देखे...' आदि शब्द बंध आकर्षक हैं।

परेश्वर फुँकवाल का नवगीत 'गुलमोहर ने ख़त लिखा' में ग्रीष्म और सामयिक सन्दर्भ में जीवन और समाज की विद्रूपताओं की अच्छी खबर ली है। गीत का मुखड़ा भी छाप छोड़ने में सफल है। चिलचिलाती धूप पर...मत लिखा, नेह के वन..., नागफनी के फन, सूरज साहूकार बना है जम कर बाँटे घाम, ऊँचे मोल धूप की बोली कम जीवन के दाम' आदि विम्बों से युक्त सम्पूर्ण नवगीत बहुत अनोखा और साम्वेदिक है।

संध्या सिंह का नवगीत 'गर्मी का देहाती दिन' में गीतकार का एक विस्तृत फलक है। 'लाल भभूका...पौ फटे ही..., शहर एक दिन... छत की कड़ियों से..., में कबूतरों, चिड़ियों, के साथ दादा जी विद्यमान हैं। नई बहुरिया की खीज है, तो बीत गया चप्पल बिन छाता...,आम आदमी का दर्द भी है।

शशि पाधा का 'जाने कैसी बात हो गयी' में दग्ध धरा, षोडशी धूप...राजरानी... गुनगुने ताल में ... रात मुँह धो गयी, जेठ की दुपहरी में...सो गयी, अछे प्रतीकों के साथ नवगीत उपस्थित है।

धर्मेन्द्र सिंह सज्जन का नवगीत 'नीमतले' में लय, छंद के साथ लोकतत्व और सामयिक सन्दर्भों की सहज उपस्थिति है। नवगीत में मुखड़ा, अंतरे, का दर्शनीय निर्वाह किया गया है। 'छत पर जाकर रात सो गई... खुले रेशमी बाल, भोर हुई सूरज ने आकर छुए गुलाबी गाल, बोली छत पर लाज न आती तुमको बुद्धू राम' में सर्वथा नवीन आकर्षक बिम्बों के साथ गीत का अपना वैशिष्ट्य है।

कल्पना रामानी के नवगीत 'बढ़े धूप के तेवर रूठी...आँगन की तुलसी।' में बड़ी रंजकता के साथ कथ्य का सम्प्रेषण किया गया है। गर्मी का सोटा, लड़े अंत तक कोमल पत्ते, सूखी तुलसी ...आँगन की तुलसी आदि पठनीय हैं। नवगीत एक सकारात्मक आशावाद के साथ समाप्त होता है।

'शामियाने धूप के' रामशंकर वर्मा का एक अभिनव नवगीत है। कार्यशाला में प्राप्त अधिकतर नवगीतों में ग्रीष्म की भयावहता का वर्णन है, परन्तु इस नवगीत में ग्रीष्म पाहुन है, उसकी प्रतीक्षा हो रही है।

ग्रीष्म के कार्य व्यापार का वर्णन सुन्दर लय और पर्यावरण प्रेमी प्रियदर्शी अशोक का सन्दर्भ इस गीत की विशेषता है।

गीता पंडित का नवगीत 'अधरों पर है सूनापन ...रूखापन' 'तकुए सी चुभती महँगाई' 'साल साल बिताते तन्हा', में गर्मी की दाह के साथ नगरीय एकाकीपन की चुभन भी है।

सभी नवगीतों पर विशेषज्ञ नवगीतकारों एवं साहित्यप्रेमियों की सुन्दर समीक्षापरक टिप्पणियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो कमोबेश नवगीतों की कोटि का निर्धारण भी करती हैं।

-पाठशाला का समीक्षक

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