सबको
शीतलता पहुँचाती
घने वृक्ष की छाँव
थका थका सा पथिक
धूप में भूखा प्यासा
बोझिल
मन से
ढूंढ रहा इक ठाँव
जल्दी से सब कुछ निपटाकर
गर्म दोपहरी की बेला में
अलसाया सा
ऊँघ रहा है
जनपद का इक गाँव
शिशु माँ की उँगली थामे
पथ पर
आगे बढ़ता
टुकर टुकर ममता ने देखे
नन्हें नन्हे पाँव
- सुरेन्द्रपाल वैद्य
मण्डी, हिमांचल प्रदेश
शीतलता पहुँचाती
घने वृक्ष की छाँव
थका थका सा पथिक
धूप में भूखा प्यासा
बोझिल
मन से
ढूंढ रहा इक ठाँव
जल्दी से सब कुछ निपटाकर
गर्म दोपहरी की बेला में
अलसाया सा
ऊँघ रहा है
जनपद का इक गाँव
शिशु माँ की उँगली थामे
पथ पर
आगे बढ़ता
टुकर टुकर ममता ने देखे
नन्हें नन्हे पाँव
- सुरेन्द्रपाल वैद्य
मण्डी, हिमांचल प्रदेश
बहुत सुंदर नव्गीत ...शुभकामनयें ..
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ....।
हटाएंअच्छी रचना के लिए सुरेन्द्रपाल जी को बधाई
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र कुमार जी , सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ...।
हटाएंसुंदर नवगीत के लिए सुरेन्द्र जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंकल्पना जी , आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हुँ ....धन्यवाद !
हटाएंइस गीत में लय एक नये आयाम में प्रस्तुत हुई है। बधाई!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविन्द्र जी ,
हटाएंआपकी प्रेरणादायी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हुँ ।
धन्यवाद ...।
बहुत सुन्दर नवगीत ...अलसाया सा
जवाब देंहटाएंऊँघ रहा है
जनपद का इक गाँव...बधाई इस सुन्दर नवगीत हेतु
आपके प्रेरणादायक बधाई संदेश के लिए आभारी हुँ ....।
हटाएंबहुत सुन्दर नवगीत है सुरेन्द्रपाल जी. अंतिम अंतरे की कोमलता अद्भुत है. बधाई आपको.
जवाब देंहटाएंगर्म दोपहरी की बेला में
जवाब देंहटाएंअलसाया सा
ऊँघ रहा है
जनपद का इक गाँव
जीवंत अभिव्यक्ति... बधाई...