बीते हुए वसंत को
गुलमोहर ने खत लिखा
कैद हुई है शीतल छाया
बिकने लगी हवाएँ
जीवन विष पी नीलकंठ है
नकली हुई दवाएँ
चिलचिलाती धूप पर
सबने अपना मत लिखा
नेह के वन हैं दावानल में
रिश्तों के पत्ते जलते हैं
स्वार्थपरकता की गर्मी में
नागफनी के फन फलते हैं
तनी कई तलवारें जब से
प्रेम में हैं रत लिखा
सूरज साहूकार बना है
जम कर बांटे घाम
ऊँचे मोल धूप की बोली
कम जीवन के दाम
भूख ने कितनों के ललाट पर
एकादशी का व्रत लिखा
-परमेश्वर फुँकवाल
लखनऊ
गुलमोहर ने खत लिखा
कैद हुई है शीतल छाया
बिकने लगी हवाएँ
जीवन विष पी नीलकंठ है
नकली हुई दवाएँ
चिलचिलाती धूप पर
सबने अपना मत लिखा
नेह के वन हैं दावानल में
रिश्तों के पत्ते जलते हैं
स्वार्थपरकता की गर्मी में
नागफनी के फन फलते हैं
तनी कई तलवारें जब से
प्रेम में हैं रत लिखा
सूरज साहूकार बना है
जम कर बांटे घाम
ऊँचे मोल धूप की बोली
कम जीवन के दाम
भूख ने कितनों के ललाट पर
एकादशी का व्रत लिखा
-परमेश्वर फुँकवाल
लखनऊ
"भूख ने कितनों के ललाट पर
जवाब देंहटाएंएकादशी का व्रत लिखा "
बहुत ही सुंदर नवगीत ! बधाई !
आपका आभार सुशीला जी.
हटाएंनकली दवाओं, रिश्तों में स्वार्थपरता, साहूकारी, भूख और प्रेम पर विरोध की तलवार अदि सामाजिक समस्याओं को इंगित करता यह नवगीत त्रासद परिस्थिति को चित्रित करता है. शिल्प, भाषा शैली, प्रतीक और बिम्ब सभी मानकों पर गीत उल्लेखनीय है.
जवाब देंहटाएंआ संजीव वर्मा जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद. इससे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिली है.
हटाएंसुंदर नवगीत के लिए परमेश्वर फुँकवाल जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
हटाएं' स्वार्थपरकता की गर्मी मेँ
जवाब देंहटाएंनागफनी के फन फलते हैं '
सही कहा .....!
बहुत अच्छी रचना ।
आ सुरेन्द्रपाल जी, आपकी टिप्पणी से उत्साहित हूँ. आपका हार्दिक धन्यवाद.
हटाएंचिलचिलाती धूप पर
जवाब देंहटाएंसबने अपना मत लिखा
नेह के वन हैं दावानल में
रिश्तों के पत्ते जलते हैं
स्वार्थपरकता की गर्मी में
नागफनी के फन फलते हैं
गीत का मुखड़ा ही गीत की आत्मा है। बहुत सुंदर नवगीत।
परमेश्वर जी हार्दिक बधाई!
आ कल्पना जी, आपकी मुहर लगने से बहुत बल मिला है. उत्साह बढ़ाने के लिए आपका ह्रदय से शुक्रिया.
हटाएंआ कल्पना जी आपका आभार, प्रोत्साहित करती पर्तिक्रिया के लिए.
हटाएंसूरज साहूकार बना है
जवाब देंहटाएंजम कर बांटे घाम
ऊँचे मोल धूप की बोली
कम जीवन के दाम -- कितना सही कहा है आपने, गर्मी का साहूकार सूरज मनमानी करता है | सुन्दर नवगीत के लिए बधाई |
आ शशी पाधा जी, पंक्तियों को चिन्हित कर उत्साह बढाती पंक्तियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
हटाएंव्यवस्था पर करारी चोट करती सुन्दर रचना के लिए बधाई परमेश्वर जी.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक धन्यवाद अनिल वर्मा जी.
हटाएंआपके गीत में मुखड़े का निर्वाह बहुत बहुत सुन्दर है ....सघन भाव से अलंकृत गीत ....बधाई आपको परमेश्वर फुन्क्वाल जी
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