चक्कर घिन्नी जैसा मौसम
गर्मी आई
गई उमंग
पाखी सिमटे छाँह ढूँढते
कोने कुतरे ठंढ टूँगते
रूप धूप का
लगे मलंग
सूरज किरणें लू ने बुन ली
गर्म आग सी साँसें चुन लीं
तपिश हवा की
उड़े पतंग
तपन निगोड़ी बढ़ती जाए
मृग छौनों का मन घबराये
जीना इसमें
भारी जंग
डॉ. सरस्वती माथुर
जयपुर
सुंदर रचना के लिए सरस्वती जी को बधाई
जवाब देंहटाएंसूरज किरणें लू ने बुन ली
जवाब देंहटाएंगर्म आग सी साँसें चुन लीं
तपिश हवा की
उड़े पतंग
सुंदर नवगीत के लिए बधाई सरस्वती जी!
सरस्वती जी , नमस्कार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई ....।
तपन निगोड़ी बढ़ती जाए
जवाब देंहटाएंमृग छौनों का मन घबराये
अनूठी अभिव्यक्ति... जीवंत गीत हेतु बधाई...
गर्मी की प्राकृतिक छटा को दर्शाता सुन्दर सा गीत है आपका | बधाई
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
आप सभी का नवगीत पसंद करने के लिए हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंडॉ सरस्वती माथुर