20 सितंबर 2012

१२. स्वप्न हुए साकार


स्वप्न हुये साकार
मगर सब अपने रूठ चले
जीवन भर आपाधापी के
क्या परिणाम मिले ?

प्यास बुझाने के खातिर
खोदा तालाब कुआँ
श्रम संयम का पाठ पढ़ा
नित बंदरबाँट हुआ
घिसते रहे रात-दिन चप्पल
तब सुख प्राप्त हु,

स्वर्ण मछलियाँ चाप रहे
कुछ संन्यासी बगुले

सदा समझते रहे सभी
गाजर मूली भाँटा,
कभी किसी से मिली गालियाँ
कभी मिला चाँटा,
हाथो हाथ लिया कुछ ने तो
कभी गया डाँटा,

सुख-दुःख जीते रहे
त्याग कर शिकवे और गिले

-अनिल कुमार वर्मा
लखनऊ

6 टिप्‍पणियां:

  1. अनिल जी,बहुत सुंदर नवगीत के लिए बधाई आपको

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  2. बहुत सुंदर नवगीत के लिए अनिल जी को ढेरों बधाई

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  3. जीवन संघर्ष का सुन्दर चित्रण ।
    बधाई अनिल जी ।

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  4. परमेश्वर फुंकवाल22 सितंबर 2012 को 6:12 pm बजे

    बहुत सुन्दर नवगीत आ अनिल वर्मा जी, आपको बहुत बहुत बधाई.

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  5. 'प्यास बुझाने के खातिर
    खोदा तालाब कुआँ
    श्रम संयम का पाठ पढ़ा
    नित बंदरबाँट हुआ
    घिसते रहे रात-दिन चप्पल
    तब सुख प्राप्त हुआ'...जैसी पंक्तियाँ इस गीत को आम जनजीवन की संघर्ष-गाथा और भटकन से जोडती हैं|और व्यवस्था के छल-प्रपंचों की ओर 'स्वर्ण मछलियाँ चाप रहे कुछ संन्यासी बगुले' पंक्ति में हुआ सार्थक इंगित इस गीत की विशिष्टता है| बधाई भाई अनिल वर्मा जी को!

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  6. एक अनूठे अंदाज में उपलब्धियों के मचान पर रिश्तों की तितलियाँ उड़ाने का अनिल वर्मा जी का प्रयास.

    स्वप्न हुये साकार
    मगर सब अपने रूठ चले
    जीवन भर आपाधापी के
    क्या परिणाम मिले ?

    महावरों का प्रयोग भी द्रष्टव्य है:

    खोदा तालाब कुआँ........
    घिसते रहे रात-दिन चप्पल .......
    स्वर्ण मछलियाँ चाप रहे.......
    सदा समझते रहे सभी
    गाजर मूली भाँटा......

    विषय का सुन्दर सम्प्रेषण. सुन्दर नवगीत.

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