आओ साथी दीप जलायें
देख
अँधेरे पथ में ऐसे
कई चितेरे अपने जैसे
बाल गये थे अनगिन दीपक
अपने प्राणों की
समिधा से
बुझे दीप वे पुनः जलायें
आओ साथी दीप जलायें
एक
ज्योंति के अंतःस्थल में
व्याप्त हो रहा जो तम उसमें
हर धागा जल रहा पृथक हो
ऐंठा अपनी–अपनी
धुन में
उन्हें मिलाकर एक बनायें
आओ साथी दीप जलायें
घुप्प
अँधेरा कर जायेंगे
किसी पथिक को भरमायेंगे
ये अनगिन माटी के दीपक
आज जले कल
बुझ जायेंगे
चिर युग तक की ज्योंति सजायें
आओ मन के दीप जलायें
– कृष्ण नन्दन मौर्य
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २३/१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंचिर युग तक की ज्योंति सजायें
जवाब देंहटाएंआओ मन के दीप जलायें
बहुत सुन्दर नवगीत
धन्यवाद वन्दना जी
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण नवगीत ।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसुंदर नवगीत के लिए कृष्ण नंदन जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआभार धर्मेंन्द्र जी
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक नवगीत के लिए कृष्ण नन्दन जी को बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंकमाल कर दिया है नन्दन जी। बहुत सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रवि जी
हटाएंदेख
जवाब देंहटाएंअँधेरे पथ में ऐसे
कई चितेरे अपने जैसे
बाल गये थे अनगिन दीपक
अपने प्राणों की
समिधा से
बुझे दीप वे पुनः जलायें
आओ साथी दीप जलायें
आओ साथी दीप जलाएं ........... बहुत खूब । बधाई।