22 अक्तूबर 2012

३. आओ साथी दीप जलायें


आओ साथी दीप जलायें

देख
अँधेरे पथ में ऐसे
कई चितेरे अपने जैसे
बाल गये थे अनगिन दीपक
अपने प्राणों की
समिधा से

बुझे दीप वे पुनः जलायें
आओ साथी दीप जलायें

एक
ज्योंति के अंतःस्थल में
व्याप्त हो रहा जो तम उसमें
हर धागा जल रहा पृथक हो
ऐंठा अपनी–अपनी
धुन में

उन्हें मिलाकर एक बनायें
आओ साथी दीप जलायें

घुप्प
अँधेरा कर जायेंगे
किसी पथिक को भरमायेंगे
ये अनगिन माटी के दीपक
आज जले कल
बुझ जायेंगे

चिर युग तक की ज्योंति सजायें
आओ मन के दीप जलायें

– कृष्ण नन्दन मौर्य

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २३/१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है

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  2. चिर युग तक की ज्योंति सजायें
    आओ मन के दीप जलायें

    बहुत सुन्दर नवगीत

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  3. सुंदर नवगीत के लिए कृष्ण नंदन जी को बहुत बहुत बधाई

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    उत्तर
    1. कृष्ण नन्दन मौर्य25 अक्तूबर 2012 को 6:05 pm बजे

      आभार धर्मेंन्द्र जी

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  4. बहुत सुंदर और सार्थक नवगीत के लिए कृष्ण नन्दन जी को बहुत बधाई।

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  5. कमाल कर दिया है नन्दन जी। बहुत सुन्दर नवगीत

    जवाब देंहटाएं
  6. देख
    अँधेरे पथ में ऐसे
    कई चितेरे अपने जैसे
    बाल गये थे अनगिन दीपक
    अपने प्राणों की
    समिधा से

    बुझे दीप वे पुनः जलायें
    आओ साथी दीप जलायें
    आओ साथी दीप जलाएं ........... बहुत खूब । बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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