घर घर दीप जले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
वैर द्वेष बह निकला मन से
भेंट अनुग्रह अधुनातन से
समय समर्थन अनुशासन से
दर दर प्रीत पले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
गीतवृन्द चौपाई दोहे
वाद्यवृन्द शहनाई मोहे
बालवृन्द तरुणाई सोहे
भिनसर गीत चले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
चंदनवन में विषधर भटके
भ्रम संभ्रम के ताले चटके
सब त्योहार मनायें हटके
तम बस दीप तले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
-आकुल
लगता है,
फिर हम एक हुए
वैर द्वेष बह निकला मन से
भेंट अनुग्रह अधुनातन से
समय समर्थन अनुशासन से
दर दर प्रीत पले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
गीतवृन्द चौपाई दोहे
वाद्यवृन्द शहनाई मोहे
बालवृन्द तरुणाई सोहे
भिनसर गीत चले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
चंदनवन में विषधर भटके
भ्रम संभ्रम के ताले चटके
सब त्योहार मनायें हटके
तम बस दीप तले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
-आकुल
गीतवृन्द चौपाई दोहे
वाद्यवृन्द शहनाई मोहे
बालवृन्द तरुणाई सोहे
भिनसर गीत चले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
बहुत सुंदर नवगीत के लिए आकुल जी को बधाई।
आभार रामानीजी
हटाएंबहुत सुंदर नवगीत है। आकुल जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआभार।
हटाएंवैर द्वेष बह निकला मन से
जवाब देंहटाएंभेंट अनुग्रह अधुनातन से
समय समर्थन अनुशासन से
दर दर प्रीत पले,
बहुत बढ़िया
आभार वंदनाजी।
हटाएंघर घर दीप जले
जवाब देंहटाएंलगता है
फिर हम एक हुए ।
एकता के सन्देश का भाव लिए सुन्दर नवगीत । बधाई ।
आभार वैद्यजी।
हटाएंबहुत सुन्दर नवगीत आकुल जी को बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत हेतु आकुल जी को बधाई
जवाब देंहटाएंचंदनवन में विषधर भटके
जवाब देंहटाएंभ्रम संभ्रम के ताले चटके
सब त्योहार मनायें हटके
तम बस दीप तले,
लगता है,
फिर हम एक हुए
अति सुंदर आकुलजी । बहुत खूब।