लक्ष्मी माँ उनके घर जाना,
जिन्हें न सुलभ अन्न का दाना
पूरा पेट नहीं भर पाते
प्राय: चूल्हा नहीं जलाते
आँचल मैं नहिं दूध की झारी
नन्हा कैसे ले किलकारी
कबतक इनको इनकी माँए
परी कथाओं से बहलाएँ
ज्वार बाजरे की कुछ मोटी
सपने में भी दिखती रोटी
वहां किरण अपनी बरसाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना,
ना ना रूप धरे तू आती
उनपर वैभव है बर्षाती
श्वेत आवरण, करके धारण
जिनका है माँ भ्रष्ट आचरण
उनके भय से मुक्ति पाने
मैंने लिखे कई तराने
कोई पर्वत कोई राई
बड़ी विषमता की यह खाई
भूल गए हैं जो मुस्काना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
हे महालक्ष्मी, हे किरणमलिका!
महँगाई की देख तालिका
हर वस्तु बाबा के मोल
उस पर भी ना पूरा तोल
अरबों के करते घोटाले
बहते हैं मदिरा के नाले
अपमिश्रण औ नकली माल
चाहे मावा या हो दाल
कड़ी धूप में है मजबूर
हे माँ भारत का मजदूर
बनिए का है सूद चुकाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
हे सागर की बेटी अबके
धन को ना तरसे ये तबके
सोच हुआ बाजारू मैया
डूब रही हर घर की नैया
मिला नहीं आय का धंधा
गर्दन में लटकाते फन्दा
दुःख के पर्वत चारों और
छाया अन्धकार घनघोर
चहें कुबेर का नहीं खज़ाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
किशोर पारीक " किशोर"
जिन्हें न सुलभ अन्न का दाना
पूरा पेट नहीं भर पाते
प्राय: चूल्हा नहीं जलाते
आँचल मैं नहिं दूध की झारी
नन्हा कैसे ले किलकारी
कबतक इनको इनकी माँए
परी कथाओं से बहलाएँ
ज्वार बाजरे की कुछ मोटी
सपने में भी दिखती रोटी
वहां किरण अपनी बरसाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना,
ना ना रूप धरे तू आती
उनपर वैभव है बर्षाती
श्वेत आवरण, करके धारण
जिनका है माँ भ्रष्ट आचरण
उनके भय से मुक्ति पाने
मैंने लिखे कई तराने
कोई पर्वत कोई राई
बड़ी विषमता की यह खाई
भूल गए हैं जो मुस्काना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
हे महालक्ष्मी, हे किरणमलिका!
महँगाई की देख तालिका
हर वस्तु बाबा के मोल
उस पर भी ना पूरा तोल
अरबों के करते घोटाले
बहते हैं मदिरा के नाले
अपमिश्रण औ नकली माल
चाहे मावा या हो दाल
कड़ी धूप में है मजबूर
हे माँ भारत का मजदूर
बनिए का है सूद चुकाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
हे सागर की बेटी अबके
धन को ना तरसे ये तबके
सोच हुआ बाजारू मैया
डूब रही हर घर की नैया
मिला नहीं आय का धंधा
गर्दन में लटकाते फन्दा
दुःख के पर्वत चारों और
छाया अन्धकार घनघोर
चहें कुबेर का नहीं खज़ाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
किशोर पारीक " किशोर"
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना,
जवाब देंहटाएंजिन्हें न सुलभ अन्न का दाना
बहुत सुन्दर प्रार्थना
बहुत बढ़िया। सुंदर।
जवाब देंहटाएंतथास्तु, आपकी प्राथना लक्ष्मी स्वीकार करें।
पारीकजी, आपको बधाई।
सुंदर नवगीत के लिए किशोर जी को बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंकोई पर्वत कोई राई
जवाब देंहटाएंबड़ी विषमता की यह खाई
भूल गए हैं जो मुस्काना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
सुन्दर भावों की रचना
पारीकजी, आपको बधाई।
अच्छा गीत है, किशोर जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर कामनाओं वाला सुन्दर गीत। बधाई किशोर जी
जवाब देंहटाएंहे सागर की बेटी अबके
जवाब देंहटाएंधन को ना तरसे ये तबके
सोच हुआ बाजारू मैया
डूब रही हर घर की नैया
मिला नहीं आय का धंधा
गर्दन में लटकाते फन्दा
दुःख के पर्वत चारों और
छाया अन्धकार घनघोर
चहें कुबेर का नहीं खज़ाना
लक्ष्मी माँ उनके घर जाना
अभिनव अनुभूति से सराबोर गीत के लिए कोटिशः शुक्रिया।
सभी का बहुत बहुत आभार ...किशोर पारीक'किशोर'
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