बीत गए युग दीप जलाते
कब तक दीप जलायें ।
विजय-पर्व के भ्रम में जीकर
बीती उम्र हमारी,
मिलती रही हमें पग-पग पर
घुटन और लाचारी ,
इन्तजार है ,अपने द्वारे
सुख की आहट पायें ।
आशाओं के दीप जलाये
घर-आँगन-चौबारे ,
अंधकार की सत्ता जीती
हम सदैव ही हारे
जीतेंगे हम ,शर्त एक है
स्वयं दीप बन जायें ।
मन की काली घनी अमावस
होगी ख़त्म किसी दिन ,
उम्मीदों की चिड़ियाँ
आँगन में गायेंगी पल-छिन ,
आओ , स्वागत करें भोर का
मंगल-ध्वनियाँ गायें ।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
कब तक दीप जलायें ।
विजय-पर्व के भ्रम में जीकर
बीती उम्र हमारी,
मिलती रही हमें पग-पग पर
घुटन और लाचारी ,
इन्तजार है ,अपने द्वारे
सुख की आहट पायें ।
आशाओं के दीप जलाये
घर-आँगन-चौबारे ,
अंधकार की सत्ता जीती
हम सदैव ही हारे
जीतेंगे हम ,शर्त एक है
स्वयं दीप बन जायें ।
मन की काली घनी अमावस
होगी ख़त्म किसी दिन ,
उम्मीदों की चिड़ियाँ
आँगन में गायेंगी पल-छिन ,
आओ , स्वागत करें भोर का
मंगल-ध्वनियाँ गायें ।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
जीतेंगे हम ,शर्त एक है
जवाब देंहटाएंस्वयं दीप बन जायें ।
बिलकुल सही कहा आपने ...प्रवाहमयी सुन्दर रचना
इस सुंदर नवगीत के लिए ठकुरेला जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआओ स्वागत करें भोर का
जवाब देंहटाएंमंगल ध्वनियाँ गाएँ ।
सुन्दर नवगीत के लिए त्रिलोक सिँह ठकुरेला जी को बधाई ।
जवाब देंहटाएंजीतेंगे हम ,शर्त एक है
स्वयं दीप बन जायें
बहुत सुंदर नवगीत...हार्दिक बधाई
विजय-पर्व के भ्रम में जीकर
जवाब देंहटाएंबीती उम्र हमारी,
मिलती रही हमें पग-पग पर
घुटन और लाचारी ,
इन्तजार है ,अपने द्वारे
सुख की आहट पायें ।
बहुत सुन्दर। बधाई
हमारी सांस्कृतिक आस्तिकता का गान करता ठकुरेला जी का यह गीत बहुत अच्छा है| |
जवाब देंहटाएंआशाओं के दीप जलाये
घर-आँगन-चौबारे ,
अंधकार की सत्ता जीती
हम सदैव ही हारे
जीतेंगे हम,शर्त एक है
स्वयं दीप बन जायें।
दीपपर्व पर आस्था का यह गायन बेहद प्रेरक है| ठकुरेला जी को मेरा हार्दिक अभिनन्दन इस सुंदर गीत के लिए
मन की काली घनी अमावस
जवाब देंहटाएंहोगी ख़त्म किसी दिन ,
उम्मीदों की चिड़ियाँ
आँगन में गायेंगी पल-छिन ,
आओ , स्वागत करें भोर का
मंगल-ध्वनियाँ गायें ।
इस अभिनव अनुभूति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।