10 नवंबर 2012

२०. मैं दिया पगडंडियों का

मैं दिया पगडंडियों का
आरती में
और होंगे
थाल में उनको सजाओ|
मैं दिया
पगडंडियों का
मुझे पथ में ही जलाओ|

सिर्फ दीवाली
नहीं मैं
मुश्किलों में भी जला हूँ,
रौशनी को
बाँटने में
मोम बनकर भी गला हूँ,
तम न
जीतेगा हँसो
तुम रौशनी के गीत गाओ |

लौ हमारी
खेत में,
खलिहान में फैली हुई है,
यह
हवाओं में
नहीं बुझती,नहीं मैली हुई है
धुआँ भी
मेरा,नयन की
ज्योति है काजल बनाओ

गहन तम
में भी जगा हूँ
नींद में सोया नहीं हूँ
मैं गगन के
चंद्रमा की
दीप्ति में खोया नहीं हूँ
देखकर
रुकना न मुझको
मंजिलों के पास जाओ

राह में
चलते बटोही की
उम्मीदें,हौसला हूँ
दीप का
उत्सव जहाँ हो
रौशनी का काफिला हूँ
ओ सुहागन !
मुझे आँचल में
छिपाकर मत रिझाओ

-जयकृष्ण राय तुषार

9 टिप्‍पणियां:

  1. लौ हमारी
    खेत में,
    खलिहान में फैली हुई है,
    यह
    हवाओं में
    नहीं बुझती,नहीं मैली हुई है
    धुआँ भी
    मेरा,नयन की
    ज्योति है काजल बनाओ
    बहुत सुंदर कल्‍पना तुषारजी। सुंदर नवगीत के लिए बधाई और दीपावली की शुभकामनायें।

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  2. बहुत ही सुंदर नवगीत है तुषार जी का, उन्हें हार्दिक बधाई इस शानदार नवगीत के लिए

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  3. भाई जयकृष्ण राय तुषार की यह रचना आज के गीत की प्रखर भंगिमा का सशक्त उदाहरण है। उन्हें मेरी हार्दिक बधाई!

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  4. लौ हमारी
    खेत में,
    खलिहान में फैली हुई है,
    यह
    हवाओं में
    नहीं बुझती,नहीं मैली हुई है
    धुआँ भी
    मेरा,नयन की
    ज्योति है काजल बनाओ ...यथार्थ का बोध कराता सुंदर नवगीत.हार्दिक बधाई तुषार जी

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