दिशाहीन हो गयीं दिशायें
रात कठिन काली है
आज दिवाली है
गह्न प्रस्तरित तम का सूरज
व्योमातीत अंधेरा
जागे जुगुनूं नक्षत्रों ने
पुन: तमस को घेरा
दीपों की लड़ियों ने फिर
बारात निकाली है
मंगल ध्वनि की धूम
पटाखे लड़ियों डाले डेरा
उज्ज्वल दीपक थाल कोटिश:
उत्साहों ने घेरा
अनुरागी अंतस आशा से
स्नेहिल लाली है
तमसित जीवन के अंधियारे
घोर अमावस लाये
कलुषित अंतर्मन देहरी पर
दीपक एक जलायें
घनीभूत नैराश्य पछाड़े
आज ऊजाली है
आज दिवाली है
-श्रीकांत मिश्र कांत
रात कठिन काली है
आज दिवाली है
गह्न प्रस्तरित तम का सूरज
व्योमातीत अंधेरा
जागे जुगुनूं नक्षत्रों ने
पुन: तमस को घेरा
दीपों की लड़ियों ने फिर
बारात निकाली है
मंगल ध्वनि की धूम
पटाखे लड़ियों डाले डेरा
उज्ज्वल दीपक थाल कोटिश:
उत्साहों ने घेरा
अनुरागी अंतस आशा से
स्नेहिल लाली है
तमसित जीवन के अंधियारे
घोर अमावस लाये
कलुषित अंतर्मन देहरी पर
दीपक एक जलायें
घनीभूत नैराश्य पछाड़े
आज ऊजाली है
आज दिवाली है
-श्रीकांत मिश्र कांत
भाषा भाव एवं शिल्प हर दृष्टि से उत्कृष्ट नवगीत, कान्त जी बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंगीत पर आपके स्नेह हेतु आभारी हू" बड़ी दी
हटाएंनमन
आपका स्नेह गीत पर मिला धन्य हुआ.. ' नमन आ'
जवाब देंहटाएंबनी रहे त्यौंहारों की ख़ुशियां हमेशा हमेशा…
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♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
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सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान
**♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
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अच्छी रचना है श्रीकांत जी, बधाई स्वीकारें
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