हर्ष के पाहून हमारे द्वार खटकाने लगे हैं ,
रोशनी के फूल देखो,खूब मुस्काने लगे हैं
छू गई आकर धरा को
व्योम की लो, स्वर्ण-रेखा
हो गई निशि स्वयं मोहित
इंद्रधनुषी चित्रलेखा
चंचला, करने लगी हैं, रश्मियाँ, अठखेलियाँ ,
अब बहुत मायूस अंधियारे नज़र आने लगे हैं
सजे रंगोली, बँधे अब
द्वार वन्दनवार, घर-घर
जगमगाएँ देहरी पर
स्वागतम के दीप तत्पर
जिन घरों में हों अँधेरे,चलो ज्योतित करें उनको
स्याह रातों के समंदर सिमटकर जाने लगे हैं
एक कोना,एक आँचल
रह न जाए कहीं खाली
दीप्त हों चेहरे सभी के
मने तब अनुपम दिवाली
हो यही संकल्प आओ बाँट दें सबको उजाले
एक मावस हँसी जब तो सूर्य शरमाने लगे हैं
--प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
रोशनी के फूल देखो,खूब मुस्काने लगे हैं
छू गई आकर धरा को
व्योम की लो, स्वर्ण-रेखा
हो गई निशि स्वयं मोहित
इंद्रधनुषी चित्रलेखा
चंचला, करने लगी हैं, रश्मियाँ, अठखेलियाँ ,
अब बहुत मायूस अंधियारे नज़र आने लगे हैं
सजे रंगोली, बँधे अब
द्वार वन्दनवार, घर-घर
जगमगाएँ देहरी पर
स्वागतम के दीप तत्पर
जिन घरों में हों अँधेरे,चलो ज्योतित करें उनको
स्याह रातों के समंदर सिमटकर जाने लगे हैं
एक कोना,एक आँचल
रह न जाए कहीं खाली
दीप्त हों चेहरे सभी के
मने तब अनुपम दिवाली
हो यही संकल्प आओ बाँट दें सबको उजाले
एक मावस हँसी जब तो सूर्य शरमाने लगे हैं
--प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
एक कोना, एक आँचल
जवाब देंहटाएंरह न जाए कहीँ खाली
दीप्त होँ चेहरे सभी के
मने तब अनुपम दिवाली ।
सुन्दर भावपूर्ण नवगीत के लिए शुक्ल जी को बधाई ।
बहुत सुंदर नवगीत है। बधाई विश्वम्भर शुक्ल जी को
जवाब देंहटाएंअति सुंदर प्रस्तुति बधाई।
जवाब देंहटाएंएक कोना,एक आँचल
जवाब देंहटाएंरह न जाए कहीं खाली
दीप्त हों चेहरे सभी के
मने तब अनुपम दिवाली
हो यही संकल्प आओ बाँट दें सबको उजाले
एक मावस हँसी जब तो सूर्य शरमाने लगे हैं
इस संकल्पपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको शतसः आभार।
एक कोना,एक आँचल
जवाब देंहटाएंरह न जाए कहीं खाली
दीप्त हों चेहरे सभी के
मने तब अनुपम दिवाली... क्या बात है। बधाई विश्वम्भर शुक्ल जी