ये कैसी दीवाली तेरी
ये कैसी उजियारी है?
जुगनू जैसी उम्मीदों पे
महँगाई की रात घिरी
और गरीबी के छालों पर
पकवानों की बात छिड़ी
मेवे, मिष्टी सोच न सकते
नून, तेल
दुश्वारी है।
मॉल, सेल की धूम मची है
हाल न पूछो खेती का
पिज्जा बर्गर क्या समझेगा
दर्द हमारी रोटी का
आँगन के शव पर खड़े हुए
ये कोठे, महल
अटारी हैं।
नाच रहे घर बाहर सारे
बाजारू झालर झुमके
पर माटी के दीप यहाँ
रहते हैं मोहाज़िर बनके
किसकी चालें किसकी साजिश
किसकी ये
हुश्यारी है।
शंभु शरण मंडल
ये कैसी उजियारी है?
जुगनू जैसी उम्मीदों पे
महँगाई की रात घिरी
और गरीबी के छालों पर
पकवानों की बात छिड़ी
मेवे, मिष्टी सोच न सकते
नून, तेल
दुश्वारी है।
मॉल, सेल की धूम मची है
हाल न पूछो खेती का
पिज्जा बर्गर क्या समझेगा
दर्द हमारी रोटी का
आँगन के शव पर खड़े हुए
ये कोठे, महल
अटारी हैं।
नाच रहे घर बाहर सारे
बाजारू झालर झुमके
पर माटी के दीप यहाँ
रहते हैं मोहाज़िर बनके
किसकी चालें किसकी साजिश
किसकी ये
हुश्यारी है।
शंभु शरण मंडल
..पिज्जा बर्गर क्या समझेगा
जवाब देंहटाएंहाल हमारी रोटी का
आँगन के शव पर खड़े हुए
ये कोठे महल
अटारी है ।
संवेदनाओँ का मार्मिक चित्रण करते नवगीतके लिए शंभुशरण जी को बधाई ।
हार्दिक धन्यवाद।
हटाएंइस सुंदर नवगीत के लिए शंभु शरण जी को बधाई
जवाब देंहटाएंभाई सुरेन्द्रपालजी शत शत आभार आपको इस मार्मिक अनुभूति पर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए।
जवाब देंहटाएंपिज्जा बर्गर क्या समझेगा
जवाब देंहटाएंदर्द हमारी रोटी का
आँगन के शव पर खड़े हुए
ये कोठे, महल
अटारी हैं।.......बहुत–बहुत सुंदर नवगीत शंभु शरण जी...बधाई