9 नवंबर 2012

१९. कसम तुझे दीप की उजास

कसम तुझे दीप की उजास

बाहर से जगर-मगर
करता है देश
आँगन में तम खेले
शैतानी रेस
मत करना झूठा परिहास

गरदन तक कर्ज चढ़ा
करते घृतपान,
सोते अपने से छोटी
चादर तान
बन गए कुबेर क्रीत दास

कम्प्यूटर काम करें
सौ-सौ का साथ,
बेकारी भोग रहे
कितने ही हाथ
मत रखना बोनस की आस

अबकी तो मार गए
भाजी के भाव,
दीवाली के संगी
बने बड़ा-पाव
लोकतंत्र आया न रास

ओमप्रकाश तिवारी

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस सुंदर गीत के लिए ओमप्रकाश जी को बधाई

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  2. मैं दिया पगडंडियों का
    आरती में
    और होंगे
    थाल में उनको सजाओ|
    मैं दिया
    पगडंडियों का
    मुझे पथ में ही जलाओ|
    मनभावन प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएं।

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