नए साल में
नई सुबह ले
ओ मेरे दिनमान निकलना !
अगर राह में
मिले बनारस
खाकर मघई पान निकलना
संगम पर
आने से पहले
मेलजोल की धारा पढ़ना
अनगढ़
पत्थर, छेनी लेकर
अकबर, पन्त, निराला गढ़ना
हर महफिल में
मधुशाला की
लिए सुरीली तान निकलना
सबकी किस्मत
रहे दही गुड़
नहीं किसी की खोटी लाना
बस्ती, गाँव -
शहर के सारे
मजलूमों को रोटी लाना
फिर -फिर
राहु ग्रहण लाएगा
साथ लिए किरपान निकलना
बौर आम के -
बैल काम के
पपिहा, मैना, कोयल लाना
सरसों खातिर
पियरी -चुनरी
गेहूँ पर हो सुग्गा -दाना
कुशल -क्षेम
हो सबके घर में
रथ पर ले वरदान निकलना
अबकी टेढ़ी
और बदचलन
राजनीति के ढंग बदलना
घर के सब
खिड़की, दरवाजे
धूमिल परदे, रंग बदलना
धरती पर है
सघन कुहासा
होकर के बलवान निकलना
-जयकृष्णराय तुषार
नई सुबह ले
ओ मेरे दिनमान निकलना !
अगर राह में
मिले बनारस
खाकर मघई पान निकलना
संगम पर
आने से पहले
मेलजोल की धारा पढ़ना
अनगढ़
पत्थर, छेनी लेकर
अकबर, पन्त, निराला गढ़ना
हर महफिल में
मधुशाला की
लिए सुरीली तान निकलना
सबकी किस्मत
रहे दही गुड़
नहीं किसी की खोटी लाना
बस्ती, गाँव -
शहर के सारे
मजलूमों को रोटी लाना
फिर -फिर
राहु ग्रहण लाएगा
साथ लिए किरपान निकलना
बौर आम के -
बैल काम के
पपिहा, मैना, कोयल लाना
सरसों खातिर
पियरी -चुनरी
गेहूँ पर हो सुग्गा -दाना
कुशल -क्षेम
हो सबके घर में
रथ पर ले वरदान निकलना
अबकी टेढ़ी
और बदचलन
राजनीति के ढंग बदलना
घर के सब
खिड़की, दरवाजे
धूमिल परदे, रंग बदलना
धरती पर है
सघन कुहासा
होकर के बलवान निकलना
-जयकृष्णराय तुषार
धन्यवाद पूर्णिमा जी |
जवाब देंहटाएं'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की कितनी कल्याणकारी भावना समाई है इन पंक्तियों में !
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर भावों और बिंबों से परिपूर्ण उच्चकोटि का नवगीत। तुषारजी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंअद्भुत अछूते बिम्बों से रू-ब-रू करता भाई जयकृष्ण राय तुषार का यह नवगीत, सच में, हमें एक अनूठी यात्रा पर ले जाता है - वह यात्रा है उन संवेदनाओं की, जिनसे हम आज अपरिचित होते जा रहे हैं। हमारी सांस्कृतिक अवचेतना में बसे इन सम्मोहक बिम्बों से यह साक्षात्कार अनूठा है। तुषार भाई को मेरा हार्दिक अभिनन्दन इस नवगीत को बतकही के शिल्प में प्रस्तुत करने हेतु।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदर्णीय प्रतिभा जी ,कल्पना रमानी जी और श्रद्धेय कुमार रवीन्द्र जी मैं बहुत भाग्यशाली हूँ की आप लोगों का स्नेह नवगीत की पाठशाला के माध्यम से मिला |आप सभी का बहुत -बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंतुषार जी!
जवाब देंहटाएंसाधु साधु.
अगर राह में
मिले बनारस
खाकर मघई पान निकलना
मजा आ गया. यह है नवगीती भाव-भंगिमा खी शब्द छटा. ठेठ जमीनी अभिव्यक्ति के सुरुचि का सटीक मिश्रण. बार-बार गुनगुनाने का मन होता है.
अबकी टेढ़ी
जवाब देंहटाएंऔर बदचलन
राजनीति के ढंग बदलना
घर के सब
खिड़की, दरवाजे
धूमिल परदे, रंग बदलना
धरती पर है
सघन कुहासा
होकर के बलवान निकलना
...नव वर्ष के इस यात्रागीत ने जीवन के हर पहलू पर अपने पड़ाव डाले हैं.नये बिम्बों से सुसज्जित बहुत ही प्यारा नवगीत.
बहुत सुन्दर, बोलचाल की भाषा में नये वर्ष पर लिखा बहुत प्यारा नवगीत है तुषार जी को वधाई
जवाब देंहटाएंवाह..वाह... बहुत सुंदर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंबधाई तुषार जी ..
संगम पर
जवाब देंहटाएंआने से पहले
मेलजोल की धारा पढ़ना
अनगढ़
पत्थर, छेनी लेकर
अकबर, पन्त, निराला गढ़ना
हर महफिल में
मधुशाला की
लिए सुरीली तान निकलना ....खरे सोने सा नवगीत। बहुत सुन्दर
आप सभी शुभचिन्तकों का हृदय से आभार |
जवाब देंहटाएं