बहुत झुकाया अब तक तूने
अब तो अपना भाल उठा
समय श्रमिक!
मत थकना-रुकना
बाधा के सम्मुख
मत झुकना
जब तक मंजिल
कदम न चूमे-
माँ की सौं
तब तक
मत चुकना
अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा
काल किसान!
आस की फसलें
बोने खातिर
एड़ी घिस ले
खरपतवार
सियासत भू में-
जमी- उखाड़
न मन-बल फिसले
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा
ओ रे वारिस
नए बरस के
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा
-संजीव सलिल
अब तो अपना भाल उठा
समय श्रमिक!
मत थकना-रुकना
बाधा के सम्मुख
मत झुकना
जब तक मंजिल
कदम न चूमे-
माँ की सौं
तब तक
मत चुकना
अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा
काल किसान!
आस की फसलें
बोने खातिर
एड़ी घिस ले
खरपतवार
सियासत भू में-
जमी- उखाड़
न मन-बल फिसले
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा
ओ रे वारिस
नए बरस के
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा
-संजीव सलिल
खरपतवार
जवाब देंहटाएंसियासत भू में-
जमी- उखाड़
न मन-बल फिसले
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा...
..नये समय की चुनौतियों से रूबरू कराता और उनसे जूझने की प्रेरणा देता बहुत ही सुंदर गीत.
ओ रे वारिस
जवाब देंहटाएंनए बरस के
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा
बहुत सुंदर नवगीत ..
भाषा बिम्ब और कहन के क्या कहने .
बहुत बधाई आपको सर ..
माँ की सौं
जवाब देंहटाएंतब तक
मत चुकना
अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा
बहुत सुंदर गीत के लिए संजीव जी को हार्दिक बधाई
बहुत झुकाया अब तक तूने
जवाब देंहटाएंअब तो अपना भाल उठा ।
प्रेरणास्पद सुन्दर नवगीत के लिए बधाई संजीव जी ।