1 जून 2013

१५. नीम के पत्ते हरे


दे रहे
कितनी तसल्ली
नीम के पत्ते हरे
पिघलने लावा लगा जब
हर गली बाज़ार में।

जून के
आकाश से जब
आग की बरसात होती
खिलखिलाते
गुलमुहर की
अमतलासों से भला क्या
देर तक तब बात होती

जानते हैं
मुस्कुराते
नीम के पत्ते हरे
सुलगने आवा लगा जब
खेत में या क्यार में।

जामुनों के
छरहरे-से पेड़
हिम्मत से लड़े हैं,
बरगदों की पीठ पर जब
लपलपाती-सी लुओं के
बेरहम साँटे पड़े हैं

पूरते हैं
घाव सारे
नीम के पत्ते हरे
दहकने लावा लगा
पर जीत वन की हार में।

हर दिशा की
देह बेशक
जेठ के इस दाह में है
चण्ड किरणों ने मथी
प्यास लेकिन
जनपदों की भी
बुझाती आ रही
यह हिमसुता भागीरथी

छटपटाहट
भूल जाते
नीम के पत्ते हरे
जब धरें जलतीं दिशाएँ
पाँव अमृता धार में

-डॉ. राजेन्द्र गौतम
नई दिल्ली

3 टिप्‍पणियां:

  1. पूरते हैं
    घाव सारे
    नीम के पत्ते हरे
    दहकने लावा लगा
    पर जीत वन की हार में।-------

    वाह बहुत सुंदर गीत


    जवाब देंहटाएं
  2. राजेन्द्र जी ने शानदार नवगीत लिखा है। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस नवगीत के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. वरिष्ठ नवगीतकार और समालोचक डा० राजेंद्र गौतम का एक खूबसूरत नवगीत. सार्थक मुखड़े के साथ सम्पूर्ण नवगीत नीम की महत्ता ko महिमामंडित करता हुआ.

    दे रहे
    कितनी तसल्ली
    नीम के पत्ते हरे
    पिघलने लावा लगा जब
    हर गली बाज़ार में।

    जवाब देंहटाएं

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