घुली चाँदनी में प्राची
की अरुणाई
कान्हा के
कर के माखन में
राधा की मोहक छवि सँवरे
वंसी की धुन, जमनाजी की
लहरों में डूबे फिर उभरे
जवाकुसुम ने रजती चूनर लहराई
गिरा शिवा
का अंगराग हो
उगी भोर में हिम पर
चन्दा का नकाब चेहरे पर
लगा आ रहा दिनकर
दोपहरी दर्पण में खुद से शरमाई
ठिठका
बेला, पारिजार ने
अपना मुखड़ा मोड़ा
और चमेली की उँगली को
गजरे ने झट छोड़ा
चम्पा की जैसे ही कलिका मुस्काई
-राकेश खंडेलवाल
वाशिंगटन डी सी
की अरुणाई
कान्हा के
कर के माखन में
राधा की मोहक छवि सँवरे
वंसी की धुन, जमनाजी की
लहरों में डूबे फिर उभरे
जवाकुसुम ने रजती चूनर लहराई
गिरा शिवा
का अंगराग हो
उगी भोर में हिम पर
चन्दा का नकाब चेहरे पर
लगा आ रहा दिनकर
दोपहरी दर्पण में खुद से शरमाई
ठिठका
बेला, पारिजार ने
अपना मुखड़ा मोड़ा
और चमेली की उँगली को
गजरे ने झट छोड़ा
चम्पा की जैसे ही कलिका मुस्काई
-राकेश खंडेलवाल
वाशिंगटन डी सी
गीतेश और बिम्बेश का एक और गीत। राकेश जी को पढ़कर कभी भी निराश नहीं होना पड़ता। बहुत बहुत बधाई उन्हें
जवाब देंहटाएंएक पुष्ट नवगीत आपका, लोक से जोड़ता हुआ। बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत के लिए राकेश जी को बधाई।
जवाब देंहटाएं