28 जुलाई 2013

१०. सोनचंपा महकती रही

सोनचंपा महकती रही रात भर
चाँदनी सुख की झरती
रही रात भर

गंध उमगी खरी
मन की मटकी भरी
इक झरी पंखुरी थाम अँजुरी धरी
यों त्रिभंगी खड़ी, ताल की जलपरी
हाय! सबको लगी मनभरी मनभरी
दीठि नटिनी ठुमकती
रही रात भर

कोई लाकर
सितारे यहाँ रख गया
हौले हल्दी के दीपक जलाकर गया
किसने केसर  के पोरों से चंदा छुआ
और चंदन के छींटों से पढ़ दी दुआ
रूप गंधा लहकती
रही रात भर

दंग सावन
ने लहराई अमृत लड़ी
घर नगर द्वार, मंगल धमाचौकड़ी
छूटी बिजली की आकाश में फुलझड़ी
उत्सवों से लदी सोनचंपा खड़ी
धुन सितारों की बजती
रही रात भर

-पूर्णिमा वर्मन
शारजाह

19 टिप्‍पणियां:

  1. अनिल वर्मा, लखनऊ.28 जुलाई 2013 को 12:53 pm बजे

    निःशब्द कर गयी खूबसूरत रचना. बार बार पढ़ रहा हूँ, प्रत्येक पंक्ति ह्रदय को झंकृत कर रही है. हार्दिक बधाई पूर्णिमा जी.

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  2. हाय! सबको लगी मनभरी मनभरी
    दीठि नटिनी ठुमकती
    रही रात भर //
    किसने केस के पोरों से चंदा छुआ
    और चंदन के छींटों से पढ़ दी दुआ ..//...........

    शानदार ..मनभावन नवगीत के लियॆ हार्दिक बधाई ....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भावना ये पंक्तियाँ पसंद करने के लिये।

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  3. उत्सवों से लदी सोनचंपा खड़ी
    धुन सितारों की बजती
    रही रात भर....
    पूर्णिमा जी कितने प्यार से इतने सुंदर बिम्ब सजाए हैं आपने। चारों तरफ खुशबू ही खुशबू है चम्पा की। उत्कृष्ट नवगीत के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।

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    1. ये बिंब पसंद करने के लिये हार्दिक आभार कल्पना जी।

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  4. कोई लाकर
    सितारे यहाँ रख गया
    हौले हल्दी के दीपक जलाकर गया...
    बहुत ही प्रभावी शब्दचित्रों से सजा सुन्दर नवगीत।
    हार्दिक बधाई।

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  5. दीदी, मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि चंपा पर क्या लिखूं. आपने तो वाकई चम्पा और सुन्दरता का ऐसा सामंजस्य बैठाया है कि मेरे पास प्रशंसा हेतु शब्द नहीं हैं.
    मैं कुछ ऐसा ही लिखना चाह रहा था लेकिन विचारों ने देरी कर दी. बहुत बहुत बधाई ऐसे सुन्दर काव्य के लिए.
    -विजय तिवारी 'किसलय'

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    1. बहुत धन्यवाद विजय जी आप अभी भी रचना भेज सकते हैं।

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  6. बहुत सुंदर नवगीत है पूर्णिमा जी, ऊपर जो कुछ भी कहा गया है उससे सहमत हूँ। बधाई स्वीकार करें

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  7. बहुत दिनों बाद आपका एक अप्रतिम नवगीत पढने को मिला। बढ़िया विम्बों से एक सम्मोहक ऐन्द्रजालिक वातावरण की सृष्टि करते हुए सुमधुर लय का प्रयोग। मुझे "मखदूम" की ग़ज़ल याद आ गयी-'आपकी याद आती रही रात भर, चश्मे नम मुस्कराती रही रात भर'. बहुत खूबसूरत नवगीत।

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    1. धन्यवाद रामशंकर जी,
      मुझे लगता है कि इस गीत की सबसे बड़ी कमी यही है कि इसका मुखड़ा अनायास आपकी याद आती रही से जा मिला। मेरे तो बहुत से मित्रों ने सिर्फ यही प्रतिक्रिया दी.. "अच्छा आपकी याद आती रही..." बाकी आगे शायद किसी ने पढ़ा ही नहीं। आपने पढ़ा, मनभावन प्रतिक्रिया लिखी, सचमुच आभारी हूँ।

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  8. 'हौले हल्दी के दीपक जलाकर गया
    किसने केसर के पोरों से चंदा छुआ
    और चंदन के छींटों से पढ़ दी दुआ'...यह नवगीत पढ़कर लगता है कि नवगीत केवल अपने परिवेश पर आक्रोश को व्यक्त करने भर का माध्यम नहीं है, जीवन की मधुरता भी इसमें गाई जा सकती है..केसर के पोरों से चंदा...इन फूलों के रंग संयोजन को इससे बेहतर उपमा क्या कोई दे पायेगा...चन्दन के छीटों से पढ़ दी दुआ....में एक पूरे मंदिर का दृश्य है पर यह फूल अलग चमक रहा है...आपको बधाई इस मधुर नवगीत के सृजन के लिए...

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  9. निःशब्द हूं कि कोई कैसे इतनी सहजता से इतना सुन्दर गीत लिख सकता है। अप्रतिम! कुछ और नहीं कहा जाता।
    आपको नमन!

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  10. कृष्ण नन्दन मौर्य13 अगस्त 2013 को 10:27 am बजे

    चाँदनी सुख की, मन की मटकी, ताल की जलपरी, हल्दी के दीपक, केसर के पोरों से चंदा छुआ, चंदन के छींटों से पढ़ दी दुआ, सावन
    ने लहराई अमृत लड़ी, बिजली की आकाश में फुलझड़ी, उत्सवों से लदी सोनचंपा...... एक चंपा के इतने बिंब.... अद्भुत....

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  11. आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 16.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  12. पुर्णिमा जी बहुत ही बढ़िया रचना , बहुत बधाई आपको ।

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